पराश्रयवडे विकार भावने करे छे, तेथी ज संसार छे.
परिणामनो कर्ता नथी, अने पोते बीजाना परिणामनी सृष्टिनो कर्ता नथी. आवुं
वस्तुस्वरूप जाणे त्यारे ते जीव ज्ञायक ज रहे छे. ज्ञानभावमां परने करवानी
मिथ्याबुद्धिनो अभाव छे. द्रव्यने पोतानी पर्यायपणे ऊपजवामां बीजा कोईनी
अपेक्षा नथी, बीजानी अपेक्षा वगर ज द्रव्यने पोतानी पर्याय साथे कर्ताकर्मनी
सिद्धि छे.–आवुं निरपेक्ष वस्तुस्वरूप छे. सत्–द्रव्य पोते ज उत्पाद–व्यय–ध्रुवता
युक्त छे. ते–ते समयनी सत् पर्याय ते वस्तुनो अंश छे, अने ते अंशपणे वस्तु
ऊपजे छे. पोतानी पर्यायपणे ऊपजती वस्तुने बीजा कोई साथे कर्ताकर्मपणुं होतुं
नथी, एवी निरपेक्षता छे. पोतानी ज्ञानपर्यायपणे ऊपजतो जीव, अजीवमां कांई
पण करतो नथी, अहीं तो एम बतावे छे के पोतानी विशुद्ध ज्ञानपर्यायरूपे
ऊपजतो जीव ते कर्मना बंधनमां निमित्त पण थतो नथी, ते कर्मप्रकृत्तिना निमित्ते
ऊपजतो नथी एटले के रागपणे ऊपजतो नथी पण पोतानी निर्मळ पर्यायरूपे ज
ऊपजे छे, अने ते निर्मळ पर्यायमां जीवद्रव्य पोते प्रकाशे छे.
नथी, तेमनाथी तो भिन्न ज्ञानपरिणाम छे, ने जीवथी अभिन्न छे.–आम जीव–
अजीवनां समस्त परिणामोमां समजी लेवुं.
ते स्वसत्तानी सन्मुख थईने परिणमे त्यारे निर्मळपर्यायरूपे परिणमे छे, अने ते
पोतानी पर्याय साथे अनन्य छे, ने परनो ते अकर्ता छे.–आम स्वपर्यायपणे
ऊपजता स्वद्रव्यने हे भव्य! तुं जाण! अने ते–ते परिणाम साथे द्रव्यनुं
अनन्यपणुं जाण.