निर्मळपर्याय ते आत्मानुं निजरूप होवाथी तेनो ते कर्ता छे, अन्य पदार्थोनी पर्याय
साथे आत्माने तादात्म्य नथी एटले ते निजरूप नथी, एटले तेनो आत्मा कर्ता नथी.
शुद्ध ज्ञानमय आत्माने खरेखर रागादि परभावो साथे तन्मयपणुं के कर्तापणुं नथी.–
आवा शुद्धआत्माने तुं जाण. ‘जाणवुं’ तेमां मोक्षमार्ग समाई जाय छे, केमके जाणवारूप
जे भाव छे तेमां रागनो अभाव छे. जाणवारूप भाव रागनो अकर्ता छे, ने रागनुं
अकर्तापणुं ते मोक्षनो मार्ग छे. रागनुं कर्तापणुं ते संसार, रागनुं अकर्ता एवुं
शुद्धज्ञानपरिणमन ते मोक्ष. आ रीते, आचार्यदेवे वस्तुस्वरूप ‘जाण’ एम कह्युं तेमां
मोक्षमार्ग आवी जाय छे.
एटले पोतामां पर द्रव्यनुं कर्तापणुं देखातुं नथी, पर्याय साथे अनन्य एवुं द्रव्य ज कर्ता
छे. आचार्यदेव फरमावे छे के आवुं वस्तुस्वरूप तमे जाणो, कर्ताकर्मनुं अभिन्नपणुं तमे
जाणो, एनाथी बीजुं न मानो.
अनन्यपणुं देखाय छे, आम देखनार जीव ते पुद्गलद्रव्यनुं कर्तापणुं मानतो नथी.
पुद्गलनी पर्याय साथे अनन्य एवुं ते पुद्गल द्रव्य ज तेनुं कर्ता छे, जीव तेनो
अकर्ता छे.
छे, पोतानी पर्यायना कर्ता होवा छतां अन्य द्रव्यनी पर्याय साथे तेने जरापण
कर्ताकर्मपणुं सिद्ध थतुं नथी, केमके तेनाथी अत्यंत भिन्नता छे. आवा
वस्तुस्वरूपने जाणतां भेदज्ञान थाय छे, परमां कर्तृत्वबुद्धि छूटे छे, ने स्वद्रव्य–
सन्मुखपणे निर्मळ ज्ञानपर्यायपणे जीव ऊपजे छे.–एनुं नाम सुविशुद्धज्ञान छे, ने
ते मोक्षमार्ग छे.