Atmadharma magazine - Ank 321
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: ४ : आत्मधर्म : अषाड : २४९६
विकारनुं कर्तापणुं रहे नहीं; निर्मळपर्यायमां तन्मय थईने तेनो ज ते कर्ता थाय छे.
निर्मळपर्याय ते आत्मानुं निजरूप होवाथी तेनो ते कर्ता छे, अन्य पदार्थोनी पर्याय
साथे आत्माने तादात्म्य नथी एटले ते निजरूप नथी, एटले तेनो आत्मा कर्ता नथी.
शुद्ध ज्ञानमय आत्माने खरेखर रागादि परभावो साथे तन्मयपणुं के कर्तापणुं नथी.–
आवा शुद्धआत्माने तुं जाण. ‘जाणवुं’ तेमां मोक्षमार्ग समाई जाय छे, केमके जाणवारूप
जे भाव छे तेमां रागनो अभाव छे. जाणवारूप भाव रागनो अकर्ता छे, ने रागनुं
अकर्तापणुं ते मोक्षनो मार्ग छे. रागनुं कर्तापणुं ते संसार, रागनुं अकर्ता एवुं
शुद्धज्ञानपरिणमन ते मोक्ष. आ रीते, आचार्यदेवे वस्तुस्वरूप ‘जाण’ एम कह्युं तेमां
मोक्षमार्ग आवी जाय छे.
पोतानी पर्यायनी साथे द्रव्यने अनन्यपणुं छे, पण बीजाथी तेने भिन्नता छे,
आम पर्याय साथे द्रव्यनुं अनन्यपणुं देखनारने परथी पोतानुं अन्यपणुं देखाय छे.–
एटले पोतामां पर द्रव्यनुं कर्तापणुं देखातुं नथी, पर्याय साथे अनन्य एवुं द्रव्य ज कर्ता
छे. आचार्यदेव फरमावे छे के आवुं वस्तुस्वरूप तमे जाणो, कर्ताकर्मनुं अभिन्नपणुं तमे
जाणो, एनाथी बीजुं न मानो.
पुद्गलद्रव्यने पण तेनी पर्याय साथे अनन्यपणुं छे, ने जीवथी भिन्नपणुं
छे. एटले पुद्गलनी कोई पण पर्यायने देखतां तेनी साथे ते अजीवद्रव्यनुं
अनन्यपणुं देखाय छे, आम देखनार जीव ते पुद्गलद्रव्यनुं कर्तापणुं मानतो नथी.
पुद्गलनी पर्याय साथे अनन्य एवुं ते पुद्गल द्रव्य ज तेनुं कर्ता छे, जीव तेनो
अकर्ता छे.
जीव–अजीव बधा द्रव्योमां आ सिद्धांत लागु पडे छे. जीव अने अजीव
बधाय द्रव्यो पोतपोतानी ते ते समयनी पर्यायपणे ऊपजे छे एटले तेनां ते कर्ता
छे, पोतानी पर्यायना कर्ता होवा छतां अन्य द्रव्यनी पर्याय साथे तेने जरापण
कर्ताकर्मपणुं सिद्ध थतुं नथी, केमके तेनाथी अत्यंत भिन्नता छे. आवा
वस्तुस्वरूपने जाणतां भेदज्ञान थाय छे, परमां कर्तृत्वबुद्धि छूटे छे, ने स्वद्रव्य–
सन्मुखपणे निर्मळ ज्ञानपर्यायपणे जीव ऊपजे छे.–एनुं नाम सुविशुद्धज्ञान छे, ने
ते मोक्षमार्ग छे.
(स. गा. ३०८ थी ३११ ना प्रवचनमांथी: वधु माटे जुओ पानुं २९)