Atmadharma magazine - Ank 321
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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अषाड : २४९६ आत्मधर्म : ५ :
. दर्शन प्राभृत
१. श्री जिनवरवृषभने अने वर्द्धमानस्वामीने नमस्कार करीने, हुं यथाक्रमे संक्षेपथी
दर्शनमार्ग कहीश.
२. श्री जिनवरदेवे शिष्योने ‘दर्शन जेनुं मूळ छे एवो धर्म’ उपदेश्यो छे. स्वकर्णथी
ते सांभळीने दर्शनहीन जीवो वंदन करवायोग्य नथी.
३. दर्शनथी जे भ्रष्ट छे ते भ्रष्ट छे. दर्शनभ्रष्ट जीव निर्वाणने पामतो नथी. चारित्रथी
भ्रष्ट होय ते तो सिद्धिने पामशे, पण जे दर्शनभ्रष्ट छे ते सिद्धिने पामतो नथी.
४. सम्यक्त्वरत्नथी भ्रष्ट जीवो, घणा प्रकारनां शास्त्रो जाणता होय तोपण,
आराधनाथी रहित होवाने कारणे संसारमां ने संसारमां ज भ्रमण करे छे.
५. सम्यक्त्वरहित जीवो भले हजार–करोड वर्षो सुधी अत्यंत उग्र तप करे तोपण
बोधिलाभने पामता नथी.
६. सम्यक्त्व–ज्ञान–दर्शन–बळ–वीर्यवडे जेओ वृद्धिगत छे अने कळिकाळना
कलुष–पापथी रहित छे तेओ सर्वे अल्पसमयमां वरज्ञानी एटले के
केवळज्ञानी थाय छे.
७. जे पुरुषना हृदयमां सम्यक्त्वरूप जळनो प्रवाह निरंतर वहे छे ते पुरुषने, पूर्वे
बंधायेला कर्मरूपी रेतीनां आवरण पण नाश पामे छे.
८. जेओ दर्शनथी भ्रष्ट छे, ज्ञानथी भ्रष्ट छे, चारित्रथी पण भ्रष्ट छे तेओ भ्रष्टमां
पण भ्रष्ट छे अने बीजा जनोने पण ते भ्रष्ट करे छे.
९. कोई धर्मशील जीव संयम–तप–नियम अने योगगुणना धारक छे, तेमनामां पण जे
दोष कहे छे ते जीवो पोते भग्न छे अने बीजाने पण भग्न कहीने दोषारोपण करे छे.
१०. जेम मूळनो विनाश थतां वृक्षना परिवारनी वृद्धि थती नथी तेम जिनदर्शनथी
जेओ भ्रष्ट छे तेओ मूळविनष्ट होवाथी सिद्धिने पामता नथी.
११. जेम वृक्षमां मूळ वडे थड शाखा वगेरे परिवार अनेकगणो वृद्धिने पामे छे तेम
मोक्षमार्गनुं मूळ जिनदर्शन छे एम गणधरदेवोए कह्युं छे.