: १८ : आत्मधर्म : श्रावण : २४९६
घाती–चतुष्कनो नाश थतां जीवने बळ–सुख–ज्ञान अने दर्शन ए चारे
गुणो (–अनंतचतुष्टय) प्रगट थाय छे, अने ते लोकालोकने प्रकाशे छे.
१५१. कर्मथी विमुक्त आत्मा ते ज प्रगटपणे परमात्मा छे, वळी ज्ञानी, शिव,
परमेष्ठी, सर्वज्ञ, विष्णु, चतुर्मुख अने बुद्ध पण ते ज छे.
१५२. आ प्रमाणे जेओ घातीकर्मथी मुक्त छे. अढार दोषथी रहित छे. सकलपरमात्मा
छे, अने त्रणभुवनरूपी घरने प्रकाशनारा दीपक छे,–ते अरिहंतभगवंतो मने
उत्तम बोधि आपो.
१५३. जे जीव परम भक्तिअनुराग सहित जिनवरदेवना चरणकमळमां नमे छे ते
उत्तम भावरूपी शस्त्रवडे जन्म–वेलिना मूळियां ऊखेडी नांखे छे.
१५४. जेम कमलिनी–पत्र पोताना निर्लेप स्वभावरूप प्रकृतिने लीधे पाणीथी भींजातुं
नथी, तेम शुद्ध भावने लीधे सत्पुरुषो विषय–कषायोथी लेपाता नथी.
१५५. ते शुद्धभाववाळा सत्पुरुषो–के जेओ संपूर्ण कळा तथा शील अने संयम गुणोथी
युक्त छे,–तेमने ज अमे श्रमण कहीए छीए; पण जे घणां दोषोथी भरेलो छे
अने जेनुं चित्त मलिन छे–ते तो श्रावकसमान पण नथी.
१५६. बळथी उद्धत, दुर्जय अने प्रबळ एवा कषाय–भटने, जेमणे विस्फुरित क्षमा
अने दमनरूपी खड्ग वडे जीती लीधा छे ते पुरुषो धीर अने वीर छे.
१५७. दर्शन अने ज्ञानप्रधान उत्तम हस्तो वडे जेमणे, विषयरूपी मगरधर–समुद्रमां
पडेला भव्यजीवोने पार उतार्या ते भगवंतो धन्य छे.
१५८. मोहरूपी महातरु पर छवायेली अने विषयोरूपी झेरी फूलवडे पुष्पित एवी
माया–वेलीने, मुनिवरो ज्ञानशास्त्रद्वारा निर्मूळपणे ऊखेडी नांखे छे.
१५९. मोह–मद–गारवथी मुक्त अने करुणाभावथी संयुक्त एवा मुनिवरो,
चारित्ररूपी खड्गवडे सर्वे दुरितना स्तंभने हणे छे.
१६०. जेम पवनपथमां ताराओनी हारमाळाथी घेरायेलो पूर्णिमानो चंद्र शोभे छे तेम
जिनमतरूपी गगनमां गुणसमूहरूपी मणिमाला सहित मुनींद्र–चंद्र शोभे छे.
१६१. चक्रधर, राम–केशव (बळदेव–वासुदेव), सुरेन्द्र, जिनेन्द्र–तीर्थंकर, गणधर वगेरे
पद, तेम ज मुनिवरोनी चारणादि ऋद्धिओ,–ते सुखोने विशुद्धभाववाळा
मनुष्यो पाम्या.
१६२. जेमणे जिनभावना भावी छे ते जीवो