Atmadharma magazine - Ank 322
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: २२ : आत्मधर्म : श्रावण : २४९६
शुद्धवस्तुनो निर्णय करवानी वात छे, ने ज्यां आवो निर्णय कर्यो त्यां रागना कर्तृत्व
वगरनी शुद्ध पर्याय वर्ते छे. शुद्ध पर्याय वर्ते ज छे–एटले हुं आ शुद्ध पर्यायने करुं एवा
भेदनुं के विकल्पनुं त्यां कोई प्रयोजन रहेतुं नथी. अभेदपणे ते स्वानुभूतिरूप शुद्ध
पर्यायने ज आत्मा कह्यो छे; अने आवा आत्माने लक्षमां लेवा जाय त्यां पण
अभेदस्वभावनो ज अनुभव थाय छे. अहो, जैनशासनमां अलौकिक वस्तुस्वरूप सर्वज्ञ
भगवाने प्रगट कर्युं छे. आवा वस्तुस्वरूपनो निर्णय करतां वीतरागता ने मोक्षमार्ग
थाय छे.
पर्यायअपेक्षाए आत्मानी अनित्यता सांभळीने राजकोटमां एक वेदांती भाई
भडकीने चालता ज थई गया के अरे, आत्मा अनित्य! अनित्यतानी वात सांभळवी
नथी. –पण भाई! राग–द्वेष–क्रोधादि भावो मनना विचारो ने ते प्रकारनी
ज्ञानपर्यायो,–ते पलटतुं स्पष्ट अनुभवमां आवे छे. घडीकमां जीवने क्रोध होय ने बीजी
क्षणे शांतपरिणाम थाय,–एम पर्याय–अपेक्षाए तेने अनित्यता छे. जो पर्याय–
अपेक्षाए अनित्यता न होय तो जेने क्रोध थयो तेने क्रोधपरिणाम ज सदा रहे, क्रोध
पलटीने शांतिना परिणाम कदी थाय ज नहीं. आत्माने जे एकांत नित्य कूटस्थ माने
छे–एनोय आत्मा पण क्षणेक्षणे पलटी तो रह्यो ज छे, पण एकांतद्रष्टिने लीधे
वस्तुस्वरूपने ते देखी शकतो नथी. ए ज रीते आत्माने सर्वथा क्षणभंगुर माननार जे
बौद्धमती, तेनो आत्मा पोते पण द्रव्य–अपेक्षाए नित्य टकी ज रह्यो छे, पण एकांत
पर्यायद्रष्टिने लीधे ते वस्तुस्वरूपने देखी शकतो नथी. धर्मी जीव (जैनमत अनुसार)
द्रव्य–पर्यायरूप सम्यक् वस्तुस्वरूपनो निर्णय करीने, द्रव्य अने पर्याय बंनेना पक्षना
विकल्पथी पार थईने, अंतर्मुख परिणति वडे शुद्ध आत्मानी अनुभूति करे छे,–ए ज
मोक्षमार्ग छे, ए ज जैनशासन छे.
आत्मानुं सम्यग्ज्ञान करवा माटेनो आ व्यायाम चाले छे, वारंवार तेनो
अभ्यास करवो जोईए, ने वस्तुस्वरूपनो निर्णय करीने तेनो अनुभव करवो
जोईए.
* * *
आचार्यदेव वीतरागी वस्तुस्वभाव समजावतां कहे छे के ‘बे स्वभाववाळो
जीवस्वभाव छे.’–परिणाम द्वारा तेने क्षणिकपणुं छे ने अन्वयगुण