Atmadharma magazine - Ank 322
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : २४९६ आत्मधर्म : १ :

दीवाळी सुधीनुं
वीर सं. २४९६
लवाजम श्रावण
बे रूपिया 1970 Aug
* वर्ष २७ : अंक १० *
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.....र्
धर्मप्राप्तिनो उल्लास ए ज साचुं वात्सल्य.
धर्मप्राप्तिनो उग्र उद्यम ए ज उत्तम उद्योतन.
धर्म द्वारा परिणतिना प्रवाहनो स्वसन्मुख वेग
–ए ज साचोसंवेग.
धर्मनी आराधनाना परिणाममां परभावनो अभाव
–ए ज निर्वेदता.
धर्ममां चित्तनुं जोडाण ए ज जीवनी साची अनुकंपा
धर्मरूप सम्यक्त्व–परिणति ए ज परम आस्तिक्यता.
धर्मरूप निर्दोष परिणति ए ज निःशंकता.
धर्म द्वारा स्वतत्त्वनी अनुभूतिमां प्रवेश ए ज निर्भयता.
धर्म द्वारा आत्मगुणोनो विकास ए ज महा प्रभावना.
धर्म द्वारा स्वतत्त्वमां स्थिति ए ज स्थितिकरण.
धर्मरूप वीतरागपरिणति ते ज उत्तम क्षमादिक.
धर्मरूप स्वसमयपणुं ते ज रत्नत्रयरूप मोक्षमार्ग.
–आम स्वभावधर्ममां सर्व गुणो समाय छे.
–आवा धर्मने हे जीव! तुं उत्साहथी आराध.