दीवाळी सुधीनुं
धर्मप्राप्तिनो उग्र उद्यम ए ज उत्तम उद्योतन.
धर्म द्वारा परिणतिना प्रवाहनो स्वसन्मुख वेग
धर्मरूप सम्यक्त्व–परिणति ए ज परम आस्तिक्यता.
धर्मरूप निर्दोष परिणति ए ज निःशंकता.
धर्म द्वारा स्वतत्त्वनी अनुभूतिमां प्रवेश ए ज निर्भयता.
धर्म द्वारा आत्मगुणोनो विकास ए ज महा प्रभावना.
धर्म द्वारा स्वतत्त्वमां स्थिति ए ज स्थितिकरण.
धर्मरूप वीतरागपरिणति ते ज उत्तम क्षमादिक.
धर्मरूप स्वसमयपणुं ते ज रत्नत्रयरूप मोक्षमार्ग.