: २ : आत्मधर्म : श्रावण : २४९६
हे जीव! उत्साहभावथी
जिनमार्गने आराध
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वीर भगवाने कहेला वीतरागमार्गनी प्रसिद्धि
अषाड वद एकमनी सवारमां, विपुलगिरि पर
समवसरणमां बिराजमान वर्धमान तीर्थंकरना
स्मरणपूर्वक, सोनगढमां आनंद–उल्लासभर्युं वातावरण
हतुं. वीरध्वनिनो सार सांभळवा गामेगामना जिज्ञासुओ
एकठा थया हता. सवारमां जिनमंदिरमां वीरनाथ
जिनेन्द्रनी, सीमंधरनाथ जिनेन्द्रनी, अने जिनवाणी
मातानी भक्तिपूर्वक पूजा थई. त्यारबाद प्रवचनना
प्रारंभमां वीरनाथनी दिव्यध्वनिनो ईतिहास संभळावतां
गुरुदेवे जे भावभीनुं प्रवचन कर्युं ते जिनमार्गमां उत्साहित
करनारुं छे; तेनो सार अहीं आप्यो छे.
आजे राजगृहीमां विपुलाचल पर्वत उपर महावीर परमात्मानी दिव्य वाणी
पहेलवहेली नीकळी. आजे शास्त्रीय श्रावण वद एकम छे, शासनमां हिसाबे आजे
बेसतुं वर्ष छे. भगवानने केवळज्ञान तो ६६ दिवस पहेलां वैशाख सुद दसमे ऋजु
नदीना किनारे (सम्मेदशिखरथी दसेक माईल दूर) थयुं हतुं; पण ते वखते गणधर थवा
योग्य जीवनी उपस्थिति न हती, अहीं वाणीनो योग पण न हतो, श्रोताओनी तेवी
लायकात पण न हती, एटले ६६ दिवस सुधी वाणी न नीकळी. वाणी नीकळी पण
जीवो धर्म न पाम्या–एम नथी; तीर्थंकरनी वाणी नीकळे ने धर्म पामनार जीवो न होय–
एम न बने. भगवाननी वाणी धर्मवृद्धिनुं ज कारण छे. पूर्वे धर्मवृद्धिना भावे
बंधायेली वाणी, अन्यजीवोने धर्मनी वृद्धिनुं ज निमित्त छे. ६६ दिवस बाद आजे
(अषाड वद एकमे) ज्यारे गौतम–ईन्द्रभूतिमहाराज प्रभुना समवसरणमां आव्या ने
प्रभुनो दिव्य देदार देखतां ज तेमनुं मान गळी गयुं, प्रभुना पादमूळमां पंचमहाव्रत
धारण कर्या ने मुनि थया, भगवान महावीरनी दिव्यवाणी