Atmadharma magazine - Ank 322
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : २४९६ आत्मधर्म : ३ :
पहेलवहेली आजे छूटी, गौतमस्वामी ते वाणी झीलीने गणधर थया अने ते वाणी १२
अंगरूपे गूंथी. ते ज वाणीनी परंपरामां आ षट्खंडागम वगेरे परमागम रचायां छे;
तेमज समयसार, अष्टपाहुड वगेरे परमागम पण जिनवाणी सांभळीने कुंदकुंदाचार्यदेवे
रचेलां छे. कुंदकुंदस्वामीए तो आ पंचमकाळमां पण विदेहक्षेत्रे जईने तीर्थंकर
परमात्मानी दिव्यवाणी सीधी सांभळी हती.
ते कुंदकुंदस्वामी आ अष्टप्राभृतमां कहे छे के हे जीव! अंतरमां तारा विशुद्ध
आत्माने ध्येय बनावीने सम्यग्दर्शन प्रगट कर, ते ज मोक्षनुं सोपान छे. सम्यक्त्वनी
आराधना वगरनो जीव संयमनां गमे तेटलां आचरण करे तोपण ते निर्वाणने पामतो
नथी. माटे प्रथम निर्मोहपणे सम्यग्ज्ञान सहित शुद्ध सम्यक्त्वनी आराधना करवी.
जे जीव सम्यक्त्व वडे आत्माने आराधे छे ते आराधक जीव केवो होय ते वात
अहीं चारित्रप्राभृत गा. ११–१२ मां कहे छे–
जे जीव निर्मोहपणे जिनसम्यक्त्वने आराधे छे, ते जीव वात्सल्य, विनय,
अनुकंपा, सुपात्रदानमां दक्षपणुं, मार्गना गुणोनी प्रशंसा, उपगूहन, धर्मरक्षा अने
आर्जवभाव–एवा लक्षणोथी लक्षित थाय छे.
जिनसम्यक्त्व एटले भगवान जिनदेवे शुद्धात्माना श्रद्धानरूप जेवुं सम्यक्त्व
कह्युं छे तेवा जिनसम्यक्त्वनी आराधना करनार जीवने धर्मात्मा प्रत्ये वात्सल्य होय
छे. भगवान जिनदेवना वीतरागमार्ग सिवाय बीजा कोई कुमार्गना देवी–देवताने जे
माने ते तो जिनमार्गनो विराधक छे, तेने तो जिनसम्यकत्वनी आराधना होती नथी.
वीरप्रभुना वीतरागमार्गनो आराधक जीव निर्दोष वात्सल्यपूर्वक धर्मने साधे छे. जेम
गायने, पोताना वत्स प्रत्ये कुदरती वात्सल्य होय छे, तेम धर्मात्माने धर्मात्माप्रत्ये
साधर्मी प्रत्ये कुदरती प्रेम–वात्सल्य होय छे. आनंदस्वभावनो प्रेम जगाडीने तेने जे
साधे छे एवा सम्यक्त्ववंत जीवने धर्म प्रत्ये सहेजे उत्साह आवे छे, ने ज्यां धर्म देखे
त्यां तेने वात्सल्य ऊभराय छे.
धर्मनो जेने प्रेम न होय तेने धर्मनी आराधना केवी? धर्मीने बीजा विशेष
धर्मात्मा प्रत्ये विनय–सत्कार–बहुमान होय छे. रत्नत्रयमां पोताथी जे विशेष होय
तेना प्रत्ये बहुमान आवे, ईर्षा न आवे. वळी उत्तम दानमां ते दक्ष होय, अने दुःखी
जीवो प्रत्ये अनुकंपा होय,–के ए जीवो जिनमार्ग वगर दुःखी थई रह्या छे,