दुःखथी केम छूटे? एवो भाव धर्मीने आवे छे.
आवो जिनमार्ग मने मळ्यो. जिनमार्गना मुनिवरो वीतरागताना ल्हावा ले छे. अहो,
धन्यमार्ग! आवो अपूर्व मार्ग मारे साधवो छे.–एम उल्लास पूर्वक जिनमार्गने
समकिती जीव साधे छे; वारंवार उत्साहथी तेनी प्रशंसा करे छे.
आवा मुनिओ ते पोते मोक्षमार्ग छे. धन्य तेमनुं जीवन! तेमनां दर्शन थाय ते पण
धन्य छे! एमनी दिगंबर वीतरागदशा परम प्रशंसनीय छे. जेने आवा निर्ग्रंथस्वरूप
मोक्षमार्गनी प्रशंसानो भाव नथी ने तेनी निंदा करे छे ते मिथ्याद्रष्टि छे. अहो,
चैतन्यनुं परम सुख पामवानो आ उत्तम मार्ग......ते जगतमां अजोड छे. आ
जिनपंथमां चालनारने सम्यक्त्वादि गुणनी प्राप्ति थाय छे; चक्रवर्ती ने ईन्द्रो आ
मार्गने ज आराधे छे. आम समकिती जिनमार्गना गुणनी अत्यंत प्रशंसा करीने तेने
आदरे छे.
धर्मनी रक्षा करे छे. अहो, आवो परम उत्तम मार्ग जेने हुं आराधुं छुं तेने ज आ जीवो
आराधे छे एटले ते मारा साधर्मी छे.–एम आदरपूर्वक धर्मात्मानी रक्षा करीने तेने
धर्ममां स्थिर करे छे. बीजाने धर्म करता देखीने पोते खुशी थाय छे. : वाह! आ जीव
पण धर्मने केवा साधी रह्या छे! वळी धर्मीने सरळभाव–आर्जवता होय छे. सरळपणे
पोताना गुण–दोष जोईने धर्म प्रत्ये उल्लास करे छे. आ प्रकारना भावो वडे समकिती
जीव ओळखाय छे.
वात छे. आवा मार्गरूप जिनसम्यक्त्वनी आराधनाथी जीव मोक्ष पामे छे.