Atmadharma magazine - Ank 322
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: ४ : आत्मधर्म : श्रावण : २४९६
जिनमार्गने पामवाथी ज जीवो दुःखथी छूटी शके छे. जीवो जिनमार्गने केम पामे? अने
दुःखथी केम छूटे? एवो भाव धर्मीने आवे छे.
वळी धर्मीना अंतरमां जिनमार्गना गुणोनी परम प्रशंसा होय छे. अहो, आवो
उत्तम जिनमार्ग! आवो निर्ग्रंथमार्ग ज जगतमां प्रशंसनीय छे. धन्य अवतार.....के
आवो जिनमार्ग मने मळ्‌यो. जिनमार्गना मुनिवरो वीतरागताना ल्हावा ले छे. अहो,
धन्यमार्ग! आवो अपूर्व मार्ग मारे साधवो छे.–एम उल्लास पूर्वक जिनमार्गने
समकिती जीव साधे छे; वारंवार उत्साहथी तेनी प्रशंसा करे छे.
अहो, निर्ग्रंथमार्गना दिगंबर मुनिवरो धन्य छे, तेओ केवळज्ञाननी एकदम
नजीक वर्ते छे, जगतथी ने शरीरथी पण निस्पृह छे ने निज स्वरूपमां परम लीन छे;
आवा मुनिओ ते पोते मोक्षमार्ग छे. धन्य तेमनुं जीवन! तेमनां दर्शन थाय ते पण
धन्य छे! एमनी दिगंबर वीतरागदशा परम प्रशंसनीय छे. जेने आवा निर्ग्रंथस्वरूप
मोक्षमार्गनी प्रशंसानो भाव नथी ने तेनी निंदा करे छे ते मिथ्याद्रष्टि छे. अहो,
चैतन्यनुं परम सुख पामवानो आ उत्तम मार्ग......ते जगतमां अजोड छे. आ
जिनपंथमां चालनारने सम्यक्त्वादि गुणनी प्राप्ति थाय छे; चक्रवर्ती ने ईन्द्रो आ
मार्गने ज आराधे छे. आम समकिती जिनमार्गना गुणनी अत्यंत प्रशंसा करीने तेने
आदरे छे.
वळी सम्यक्त्वनो आराधक जीव बीजा धर्मात्माना किंचित् दोषनुं उपगूहन
करीने ते दोषने टाळे छे, तथा साधर्मीने संकट होय तो ते दूर करीने तेनी रक्षा करे छे,
धर्मनी रक्षा करे छे. अहो, आवो परम उत्तम मार्ग जेने हुं आराधुं छुं तेने ज आ जीवो
आराधे छे एटले ते मारा साधर्मी छे.–एम आदरपूर्वक धर्मात्मानी रक्षा करीने तेने
धर्ममां स्थिर करे छे. बीजाने धर्म करता देखीने पोते खुशी थाय छे. : वाह! आ जीव
पण धर्मने केवा साधी रह्या छे! वळी धर्मीने सरळभाव–आर्जवता होय छे. सरळपणे
पोताना गुण–दोष जोईने धर्म प्रत्ये उल्लास करे छे. आ प्रकारना भावो वडे समकिती
जीव ओळखाय छे.
जुओ, आ भगवाननो मार्ग! भगवान महावीरे आवो उत्तम मार्ग आजे
राजगृहीमां उपदेश्यो, ने गौतम गणधरे ते झीलीने शास्त्ररूप गुंथ्यो, ते ज मार्गनी आ
वात छे. आवा मार्गरूप जिनसम्यक्त्वनी आराधनाथी जीव मोक्ष पामे छे.
जेने अज्ञानथी भरेला मिथ्यामार्गमां उत्साह होय, ने कुमार्गनी प्रशंसा–सेवा–