Atmadharma magazine - Ank 322
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : २४९६ आत्मधर्म : ५ :
श्रद्धा करतो होय ते जीवने जिनसम्यक्त्व होतुं नथी. सम्यग्द्रष्टि–धर्मी जीवने परम
वीतराग एवा जिनमार्गमां ज उत्साह होय छे, तेनी ज प्रशंसा–सेवा अने श्रद्धा करे
छे.–आवो जीव जिनमार्गना महिमानुं वारंवार चिंतन करीने, सम्यग्दर्शन–ज्ञान
चारित्रमां पोतानो उत्साह वधारे छे एटले के रत्नत्रयधर्मनी शुद्धि करे छे; तेनी प्रशंसा
अने महिमा फेलावीने उत्तम प्रभावना करे छे. अहो, आ तो वीरप्रभुए विपुलाचल
पर उपदेशेलो अपूर्व वीतरागमार्ग छे. अनादिथी आवो अपूर्व मार्ग तीर्थंकर भगवंतो
कहेता आव्या छे ने अनंता जीवो आवा मार्गने साधीने मोक्ष पाम्या छे. मारे पण आ
ज मार्ग साधवानो छे–एम सम्यकश्रद्धा वडे महान उल्लासपूर्वक धर्मी जीव मोक्षमार्गने
साधे छे.
अरे, कुंदकुंदस्वामी कहे छे के जैनना नामे चालतां श्वेतांबरादिक मतो पण
प्रशंसनीय नथी, परम निर्ग्रंथरूप वीतराग जिनमार्गनी श्रद्धा करीने ते ज प्रशंसनीय
छे. भाई, पहेलां साचा मार्गनो तो निर्णय करो, मार्गना निर्णय वगर मोक्षने क्यांथी
साधशो? मुनि होय ने वस्त्र पहेरे–एवो मार्ग भगवाननो नथी. अरे, जगतमां
केटलाय मिथ्यामार्ग चाले छे तेवा मार्गने सेवनारा मिथ्याद्रष्टि जीवोनो संग पण करवा
जेवो नथी.
भगवाने कहेलो मार्ग वीतराग सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप छे. अहो!
वीतरागमार्गी मुनिवरोनी दशा अंतरमां ने बहारमां अलौकिक होय छे. अंतरमां त्रण
कषायना अभावथी प्रचुर आनंदनुं वेदन, अने बहारमां नग्न दिगंबर देह–जेना पर
वस्त्रनो ताणो पण न होय,–एक ज वार निर्दोष भोजन ल्ये,–अंदर ज्ञान–ध्यान
भावनामां घणी एकाग्रता होय–आवी मुनिदशा जिनमार्गमां होय छे. हे जीवो! सत्य
ज्ञानपूर्वक जिनमार्गनी श्रद्धा करीने तेनो उल्लास करो; ते ज महा प्रशंसनीय मार्ग छे;
आवा मार्गनी श्रद्धा–सेवा–प्रशंसा–उत्साहरूप भाव ते सम्यग्द्रष्टिनुं लक्षण छे.
विपुलाचल पर वीर भगवाने (२प२६ वर्ष पहेलां) अषाड वद एकमे
दिव्यध्वनि वडे आवा वीतरागमार्गने प्रसिद्ध कर्यो हतो. ते ज परमसत्य मार्ग
कुंदकुंदाचार्य वगेरे दिगंबर संतो द्वारा आज सुधी चाल्यो आव्यो छे. अंतर्मुखी ज्ञान वडे
आवा वीतरागमार्गने ओळखीने परम महिमा अने उल्लासथी तेनी आराधना करवा
जेवी छे.
जय महावीर........जय दिव्य ध्वनि........जय विपुलाचल
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