Atmadharma magazine - Ank 322
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : २४९६ आत्मधर्म : ७ :
६. हे मोक्षमार्गना पथिक! तुं भावने प्रथम जाण; भाव वगरना द्रव्यलिंगथी तने
शुं लाभ छे? जिनोपदिष्ट शिवपुरीना पंथने प्रयत्न वडे तुं जाण.
७. हे सत्पुरुष! अनंतसंसारमां अनादिकाळथी तें भावरहितपणे बाह्यनिर्ग्रंथ
रूपोने घणीवार ग्रह्या अने छोडया.
८. भीषण नरकगतिमां, तिर्यंचगतिमां तथा कुदेव अने कुमनुष्यगतिमां तुं तीव्रदुःख
पाम्यो; माटे हे जीव! हवे तुं जिनभावना भाव.
९. हे जीव! सात नरकभूमिमां घणा लांबाकाळ सुधी दारूण–भीषण ने असह्य
दुःखो तें निरंतर भोगव्यां, सहन कर्यां.
१०. हे जीव! भावरहित एवो तुं, तिर्यंचगतिमां खोदावुं, तपवुं, बळवुं, वींझावुं,
विछेदन अने निरोधन वगेरे दुःखो चिरकाळ सुधी पाम्यो.
११. हे जीव! आगंतुक, मानसिक, सहज अने शारीरिक एवा चार प्रकारनां दुःखो
मनुष्यजन्ममां तुं अनंतवार पाम्यो.
१२. हे महाशय! शुभभावना वगरनो तुं, देवलोकमां देव–देवीना वियोगकाळे दुःखी
थयो, तेम ज तीव्र मानसिक दुःखने पाम्यो.
१३. हे जीव! द्रव्यलिंगी एवो तुं कांदर्पी वगेरे पांच अशुभादि भावना भावीने
देवलोकमां अत्यंत हलको देव थयो.
१४. कुभावनारूपी भाव जेनुं बीज छे एवी ‘पार्श्वस्थ’ वगेरे अशुभ भावनाओ
अनादिकाळमां अनेकवार भावीने हे जीव! तुं दुःखी थयो.
१५. पोते हलको देव थयो त्यारे बीजा देवोनां बहुविध गुण–विभूति–ऋद्धि अने
माहात्म्य देखीने हे जीव! तुं बहु मानसिक दुःख पाम्यो.
१६. अशुभ भावरूप प्रयोजन सहित चार प्रकारनी विकथामां आसक्त अने मदमत्त
थईने तुं अनेकवार कुदेवपणुं पाम्यो.
१७. हे मुनिप्रवर! अशुचिमय बीभत्स अने कलि–मलथी भरेला एवा अनेक
जननीना गर्भवासमां तुं दीर्धकाळ सुधी रह्यो.
१८. हे महाशय! अनंत जन्मांतरोमां जुदी जुदी जनेताओनुं एटलुं दूध तें पीधुं–के
जे सागरनां पाणीथी पण घणुं अधिक थाय.
१९. तारुं मरण थतां दुःखथी रडेली जुदी जुदी अनेक जननीनां नयनोनुं नीर
सागरनां पाणीथी पण अधिक छे.
२०. हे जीव! अनंत भवसागरमां छिन्न भिन्न थयेला तारा नख–केश–नाळ अने
हाडकांने जो कोई देव भेगां करे तो मेरुगिरिथी पण मोटो ढगलो थाय.