Atmadharma magazine - Ank 323
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 12 of 44

background image
: १० : आत्मधर्म : भादरवो : २४९६
दिवसमां सो योजन जाय, ते शुं पृथ्वीतळ पर मात्र अर्धो गाउ जवा समर्थ नथी?
जे सुभट युद्धने विषे युद्ध करनारा जे करोडो योद्धाओ ते सर्वे वडे पण न
जीताय, ते सुभट एक मनुष्य वडे केम जीताय?
२३. तप वडे तो बधा स्वर्ग पामे छे, पण जे ध्यानयोग वडे स्वर्ग पामे छे ते
परलोकमां एटले के अन्यभवमां शाश्वत सुखने पामे छे.
२४. जेम अतिशय शोधनयोगथी सोनुं शुद्ध थाय छे तेम कालादि लब्धिअनुसार
अतिशय शोधनयोगथी आत्मा परमात्मा थाय छे.
२प. व्रत–तप वडे स्वर्गनी प्राप्ति थवी ते उत्तम छे, परंतु अव्रतादि वडे नरकना
दुःखोनी प्राप्ति थवी–ते ठीक नथी; –छाया अने तडकामां ऊभेला वटेमार्गुनी माफक
तेमनामां मोटो भेद जाणो.
२६. भयंकर संसारमहार्णवमांथी जे बहार नीकळवा ईच्छे छे. ते कर्मईंधनने
दहन करवा माटे शुद्ध आत्माने ध्यावे छे.
२७. सर्वे कषायोने तेमज मोटाई–मद–राग–द्वेष–व्यामोहने छोडीने, अने
लोकव्यवहारथी विरक्त थईने, ध्यानस्थ योगीओ आत्माने ध्यावे छे.
२८. मिथ्यात्व–अज्ञान–पाप अने पुण्य तेमने त्रिविधे छोडीने, मौन–व्रत सहित
योगमां स्थित योगीओ आत्माने ध्यावे छे.
२९. जे रूप मने देखाय छे ते तो कांई जाणतुं नथी, अने जे जाणनारो छे ते तो
देखातो नथी, तो पछी हुं कोनी साथे बोलुं?
३०. योगमां स्थित योगी जिनदेवे कहेला वस्तुस्वरूपने जाणे छे अने
सर्वआस्रवना निरोधपूर्वक पूर्वसंचित कर्मोने खपावे छे.
३१. जे योगी व्यवहारमां सुतेला छे ते स्वकार्यमां जागता छे; अने जे
व्यवहारमां जागता छे ते आत्मकार्य माटे ऊंघता छे.
३२. –आ जाणीने योगी सर्व व्यवहारने सर्वथा छोडे छे अने जिनवरदेवे कहेला
परमात्मस्वरूपने ध्यावे छे.
३३. हे मुनि! पांचमहाव्रत पांचसमिति ने त्रणगुप्तियुक्त, तेमज रत्नत्रयसंयुक्त
थईने सदा ध्यान–अध्ययन करो.
३४. रत्नत्रयनी आराधना करनार जीवने आराधक जाणवो, अने तेनी
आराधनाना विधाननुं फळ केवळज्ञान छे.
३प. सिद्ध शुद्ध सर्वज्ञ सर्वलोकदर्शी अने