Atmadharma magazine - Ank 323
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: १२ : आत्मधर्म : भादरवो : २४९६
वंत थईने, आत्माने ध्यावता थका परमपदने प्राप्त करे छे.
५०. चारित्र छे ते स्व–धर्म छे; धर्म छे ते आत्मानो समभाव छे; अने ते
(समभावरूप धर्म) राग–द्वेषरहित जीवनां अनन्य परिणाम छे.
प१. जेम स्फटिकमणि विशुद्ध छे तोपण परद्रव्यथी युक्त थतां अन्यरूप थाय छे,
तेम जीव पण विशुद्ध स्वभाववाळो होवा छतां रागादिथी युक्त थतां अन्य–अन्यरूप
थाय छे.
प२. जे देव–गुरु प्रत्ये भक्तिवंत छे, साधर्मिक–संयतो प्रत्ये अनुरक्त छे अने
सम्यक्त्वनुं उद्वहन करनार छे ते योगी ध्यानमां रत थाय छे.
प३. अज्ञानी उग्र तपवडे घणां भवोमां जेटलां कर्मोने खपावे छे, तेटलां कर्मोने
त्रण गुप्तिवंतज्ञानी अंतर्मुहूर्तमां ज खपावे छे.
प४. परद्रव्यमां राग वडे शुभयोगमां जे प्रीति करे छे ते अज्ञानी छे, अने ज्ञानी
एनाथी विपरीत छे.
५५. परद्रव्यनी जेम, मोक्षने माटे करवामां आवतो रागभाव पण आस्रवनो
हेतु छे; जे भाव आस्रवहेतु छे ते भावने ते मोक्षनुं कारण माने छे, तेथी ते अज्ञानी छे,
अने आत्मस्वभावथी विपरीत छे.
प६. जेनी मति कर्म आश्रित छे, ते स्वभावज्ञानने खंडित अने दुषित करनार
छे, तेथी ते अज्ञानी छे अने जिनशासनने दुषण लगाडनार छे–एम कहेवामां आव्युं छे.
प७. जेनुं ज्ञान चारित्रहीन छे, तथा तपसंयुक्त होवा छतां जे दर्शनहीन छे,
अने बीजा कार्योमां पण जे भावरहित छे–एवा जीवने लिंगग्रहण वडे शुं सुख छे?
प८. जे अचेतनने पण चेतन माने छे ते अज्ञानी छे, अने जे चेतनमां ज
चेतनपणुं माने छे तेने ज्ञानी कहेल छे.
प९. तप वगरनुं जे ज्ञान छे ते (मोक्षने माटे) अकृतार्थ छे, तेम ज ज्ञान
वगरनुं जे तप छे ते पण अकृतार्थ छे; माटे ज्ञान–तपथी संयुक्त जीव निर्वाणने पामे
छे.
६०. जेमने चोक्कसपणे सिद्धि थवानी छे अने जेओ चार ज्ञानसहित छे एवा
तीर्थंकर पण तपश्चरण करे छे.–ध्रुवपणे आम जाणीने हे भव्य! तमे ज्ञान सहित होवा
छतां तपश्चरण करो.
६१. परिकर्मयुक्त जे साधु बाह्य–मुनिलिंग सहित छे पण अंतरंग लिंगथी
रहित छे त स्वकीय–चारित्रथी भ्रष्ट छे अने मोक्षपथनो विनाशक छे.
६२. सुखे–सुखे भावेलुं ज्ञान दुःखप्रसंगे