मरूभूति मरीने हाथी थयो छे; ने कमठनो जीव सर्प थयो छे. तेना राजा
अरविंद वैराग्यथी मुनि थया छे...मुनिराज अनेक तीर्थोनी यात्रा करता करता
देशोदेश विचरे छे ने भव्य जीवोने प्रतिबोधे छे.–ते वात गतांकमां आपे वांची.
हवे हाथीनो जीव सम्यक्त्व पामे छे तेनुं आनंदकारी वर्णन आ अंकमां वांचो)
आत्मानुं ध्यान करे छे.
करवा जई रह्या छे, केटलाक दिगंबर मुनिराज पण संघनी साथे विहार करी रह्या छे.
रत्नत्रयधारी ते मुनिराज कोईक वार धर्मकथा करे छे तो कोईवार आत्मानुं स्वरूप
समजावे छे. ते सांभळीने सौने घणो आनंद थाय छे; कोईकवार भक्तिपूर्वक मुनिराजने
आहारदान देवानो लाभ मळतां श्रावकोने घणो हर्ष थाय छे; अरसपरस सौ
साधर्मीओ धर्मचर्चा करे छे, पंचपरमेष्ठीनां गुण गाय छे;–आम बहुज आनंदपूर्वक
मोटो संघ सम्मेदशिखरनी यात्रा करवा माटे जई रह्यो छे.