Atmadharma magazine - Ank 323
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : २४९६ आत्मधर्म : १७ :
भगवान पारसनाथ
[२]
हाथीना भवमां
सम्यक्त्वनी प्राप्ति
* * * * *
[मरूभूति–हाथी अने कमठ–सर्प]
(आपणा त्रेवीसमां तीर्थंकर पारसनाथ भगवाननी आ कथा चाले छे.
मरूभूति अने कमठ ए बंने भाई हता, कमठे क्रोधथी मरूभूतिने मारी नांख्यो;
मरूभूति मरीने हाथी थयो छे; ने कमठनो जीव सर्प थयो छे. तेना राजा
अरविंद वैराग्यथी मुनि थया छे...मुनिराज अनेक तीर्थोनी यात्रा करता करता
देशोदेश विचरे छे ने भव्य जीवोने प्रतिबोधे छे.–ते वात गतांकमां आपे वांची.
हवे हाथीनो जीव सम्यक्त्व पामे छे तेनुं आनंदकारी वर्णन आ अंकमां वांचो)
सम्मेदशिखर.....ए आपणा जेनधर्मनुं महान तीर्थ छे, अनंता जीवो त्यांथी
सिद्धपद पाम्या छे; तेनी यात्रा करतां सिद्धपदनुं स्मरण थाय छे. अनेक मुनिओ त्यां
आत्मानुं ध्यान करे छे.
आवा सम्मेदशिखर महान तीर्थनी यात्रा करवा माटे एक मोटो संघ चाल्यो
जाय छे. ए यात्रासंघमां हजारो श्रावको छे, केटलाय नानां बाळको पण होंशे होंशे जात्रा
करवा जई रह्या छे, केटलाक दिगंबर मुनिराज पण संघनी साथे विहार करी रह्या छे.
रत्नत्रयधारी ते मुनिराज कोईक वार धर्मकथा करे छे तो कोईवार आत्मानुं स्वरूप
समजावे छे. ते सांभळीने सौने घणो आनंद थाय छे; कोईकवार भक्तिपूर्वक मुनिराजने
आहारदान देवानो लाभ मळतां श्रावकोने घणो हर्ष थाय छे; अरसपरस सौ
साधर्मीओ धर्मचर्चा करे छे, पंचपरमेष्ठीनां गुण गाय छे;–आम बहुज आनंदपूर्वक
मोटो संघ सम्मेदशिखरनी यात्रा करवा माटे जई रह्यो छे.
जे अरविंद–राजा दीक्षा लईने मुनि थया छे ते अरविंदमुनिराज पण आ