Atmadharma magazine - Ank 323
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: १८ : आत्मधर्म : भादरवो : २४९६
संघनी साथे ज छे. चालतां–चालतां संघे एक वनमां पडाव नाख्यो. शांत वन
हजारो मनुष्योना कोलाहलथी गाजी ऊठयुं...जंगलमां जाणे नगरी वसी गई.
अरविंद मुनिराज एक झाड नीचे आत्माना ध्यानमां बेठा छे. एवामां अचानक
एक घटना बनी......शुं बन्युं? ते सांभळो.
एक मोटो हाथी गांडो थईने चारेकोर दोडादोड करवा लाग्यो, ने लोको
नासभाग करवा लाग्या. कोण छे ए हाथी? थोडाक भव पछी तो ए हाथी
पारसनाथभगवान थवानो छे. जे पूर्वभवमां मरूभूति हतो ने मरीने हाथी थयो
छे, ते ज हाथी आ छे. एनुं नाम वज्रघोष छे; ते हाथी आ वननो राजा छे, ने
भान वगर जंगलमां भटकी रह्यो छे. पूर्वभवनी तेनी भाभी (कमठनी स्त्री) पण
मरीने आ जंगलमां हाथणी थई छे. सुंदर वनमां एक मोटुं सरोवर छे; तेमां हाथी
रोज नहाय छे, वनमां मीठां फळफूल खाय छे, ने हाथणीओ साथे रमे छे. निर्जर
वनमां माणसो क््यारेक ज देखाय छे.
जे वनमां आ हाथी रहेतो हतो ते ज वनमां यात्रासंघे पडाव नाख्यो एटले
त्यां मोटो कोलाहल थवा लाग्यो. निर्जन वनमां आटला बधा माणसो ने वाहनो
हाथीए कदी जोया न हता; तेथी माणसोने देखीने हाथी रघवायो बन्यो ने गांडो
थईने चारेकोर घूमवा लाग्यो, जे हडफेटमां आवे तेने मारवा लाग्यो. लोको तो
चीसेचीस पाडीने चारेकोर भागवा लाग्या. हाथीए कोईने पग नीचे छूंदी नांख्या
तो कोईने सूंढथी पकडीने ऊंचे ऊलाळ्‌या; रथने भांगी नांख्या ने झाडने ऊखेडी
नांख्या. घणा माणसो भयभीत थईने मुनिराजना शरणमां पहोंची गया.
गांडो हाथी चारे कोर फरतो फरतो, ज्यां अरविंद मुनिराज बिराजता हता
ते तरफ किकियारी करतो दोड्यो. लोकोने बीक लागी के अरे, आ हाथी मुनिराजने
शुं करी नांखशे?
मुनिराज तो शांत थईने बेठा छे एमने जोतां ज सूंढ ऊंची करीने हाथी
तेमना तरफ दोड्यो......पण......
–पण अरविंद मुनिराजनी छातीमां एक चिह्न जोतां ज ते हाथी एकदम
शांत थई गयो.....तेने थयुं के अरे! आमने तो में क्यांक जोया छे...आ मारा कोई
ओळखीता ने हितस्वी होय एम मने लागे छे.–आवा विचारमां हाथी तो एकदम