हजारो मनुष्योना कोलाहलथी गाजी ऊठयुं...जंगलमां जाणे नगरी वसी गई.
अरविंद मुनिराज एक झाड नीचे आत्माना ध्यानमां बेठा छे. एवामां अचानक
एक घटना बनी......शुं बन्युं? ते सांभळो.
पारसनाथभगवान थवानो छे. जे पूर्वभवमां मरूभूति हतो ने मरीने हाथी थयो
छे, ते ज हाथी आ छे. एनुं नाम वज्रघोष छे; ते हाथी आ वननो राजा छे, ने
भान वगर जंगलमां भटकी रह्यो छे. पूर्वभवनी तेनी भाभी (कमठनी स्त्री) पण
मरीने आ जंगलमां हाथणी थई छे. सुंदर वनमां एक मोटुं सरोवर छे; तेमां हाथी
रोज नहाय छे, वनमां मीठां फळफूल खाय छे, ने हाथणीओ साथे रमे छे. निर्जर
वनमां माणसो क््यारेक ज देखाय छे.
हाथीए कदी जोया न हता; तेथी माणसोने देखीने हाथी रघवायो बन्यो ने गांडो
थईने चारेकोर घूमवा लाग्यो, जे हडफेटमां आवे तेने मारवा लाग्यो. लोको तो
चीसेचीस पाडीने चारेकोर भागवा लाग्या. हाथीए कोईने पग नीचे छूंदी नांख्या
तो कोईने सूंढथी पकडीने ऊंचे ऊलाळ्या; रथने भांगी नांख्या ने झाडने ऊखेडी
नांख्या. घणा माणसो भयभीत थईने मुनिराजना शरणमां पहोंची गया.
शुं करी नांखशे?
ओळखीता ने हितस्वी होय एम मने लागे छे.–आवा विचारमां हाथी तो एकदम