Atmadharma magazine - Ank 323
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : २४९६ आत्मधर्म : १९ :
शांत थईने ऊभो रह्यो; एनुं गांडपण मटी गयुं ने मुनिराज सामे सूंढ नमावीने बेसी
गयो.
लोको तो आश्चर्य पामी गया के अरे! मुनिराज पासे आवतां ज आ गांडो
हाथी एकाएक शांत केम थई गयो? आ बनाव देखीने चारेकोरथी माणसो त्यां
मुनिराज पासे दोड आव्या. मुनिराजे अवधिज्ञान वडे हाथीना पूर्वभवने जाणी लीधो;
अने शांत थयेला हाथीने संबोधीने कह्युं: अरे बुद्धिमान! आ पागलपणुं तने नथी
शोभतुं. आ पशुता, अने आ हिंसा तुं छोड! पूर्वभवमां तुं मरूभूति हतो; त्यारे हुं
अरविंदराजा हतो ते मुनि थयो छुं; अने तुं मारो मंत्री हतो, पण आत्मानुं भान
भूलीने आर्तध्यानथी तुं आ पशुपर्याय पाम्यो...हवे तो तुं चेत...अने आत्माने
ओळख.
मुनिराजनां मीठां वचन सांभळीने हाथीने घणो वैराग्य थयो, तेने पोताना
पूर्वभवनुं जातिस्मरण ज्ञान थयुं. पोताना दुष्कर्म माटे तेने घणो पस्तावो थयो; तेनी
आंखोमांथी आंसुनी धार पडवा लागी, विनयथी मुनिराजनां चरणोमां माथुं नमावीने
तेमनी सामे जोई रह्यो....कुदरती तेनुं ज्ञान एटलुं ऊघडी गयुं के ते मनुष्यनी भाषा
समजवा लाग्यो...अने मुनिराजनी वाणी सांभळवा तेने जिज्ञासा जागी.
मुनिराजे जोयुं के आ हाथीना जीवना परिणाम अत्यारे विशुद्ध थया छे, तेने
आत्मा समजवानी तीव्र जिज्ञासा जागी छे.....अने ते एक होनहार तीर्थंकर छे....एटले
अत्यंत प्रेमथी (वात्सल्यथी) ते हाथीने उपदेश देवा लाग्या: अरे हाथी! तुं शांत था.
आ पशुपर्याय ए कांई तारुं स्वरूप नथी, तुं तो देहथी भिन्न चैतन्यमय आत्मा छो.
आत्माना ज्ञान वगर घणा भवमां ते घणां दुःख भोगव्यां, हवे तो आत्मानुं स्वरूप
जाण अने सम्यग्दर्शनने धारण कर. सम्यग्दर्शन ज जीवने महान सुखकर छे. राग अने
ज्ञानने एकमेक अनुभववानो अविवेक तुं छोड....छोड! तुं प्रसन्न था....सावधान
था....अने सदाय उपयोगरूप स्वद्रव्य ज मारुं छे एम तुं अनुभव कर. तेथी तने घणो
आनंद थशे.
हाथी खूब भक्तिथी सांभळे छे. मुनिराजना श्रीमुखथी आत्माना स्वरूपनी
अने सम्यग्दर्शननी वात सांभळतां तेने घणो हर्षोल्लास थाय छे, तेनां परिणाम वधु ने
वधु निर्मळ थतां जाय छे...तेना अंतरमां सम्यग्दर्शननी तैयारी चाली रही छे.
मुनिराज तेने आत्मानुं परम शुद्धस्वरूप देखाडे छे : रे जीव! तारो आत्मा