Atmadharma magazine - Ank 323
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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भादरवो : २४९६ आत्मधर्म : २१ :
संघना हजारो लोको आ द्रश्य देखीने बहु खुशी थया. एक क्षणमां आ बधुं शुं
बनी रह्युं छे ते सौ आश्चर्यथी जोवा लाग्या.
आत्मानुं ज्ञान थतां हाथी तो घणा ज भक्तिभावथी मुनिराजनो उपकार
मानवा लाग्यो.......अरे, पूर्वे आत्माना भान विना आर्तध्यान करवाथी हुं पशुदशाने
पाम्यो, पण हवे आ मुनिराजना प्रतापे मने आत्मभान थयुं छे, ने ते आत्माना ध्यान
वडे हवे हुं परमात्मा थईश.–एम विचारीने ते हाथी सूंढ नमावीने मुनिराजने
नमस्कार करतो हतो..
(जुओ तो खरा, बंधुओ! आपणो जैनधर्म केवो महान छे के तेना सेवन वडे
एक पशु पण आत्मज्ञान करीने परमात्मा बनी शके छे! दरेक आत्मामां परमात्मा
थवानी ताकात छे–एम आपणो जैनधर्म बतावे छे. वाह...जैनधर्म...वाह!)
मुनिराज पासेथी सम्यग्दर्शननुं स्वरूप समजीने, हाथीनी साथे साथे बीजा पण
घणाय जीवो सम्यग्दर्शन पाम्या. जेम तीर्थंकर एकला मोक्षमां न जाय, बीजा घणाय
जीवो पण तेमनी साथे मोक्ष पामे, तेम अहीं तीर्थंकरनो आत्मा सम्यग्दर्शन पामतां,
बीजा घणाय जीवो पण तेमनी साथे सम्यग्दर्शन पाम्या; अने चारेकोर धर्मनो
जयजयकार थई गयो. थोडीवार पहेलां जे हाथी गांडो थईने हिंसा करतो हतो, ते ज
हाथी हवे आत्मज्ञानी थईने शांत अहिंसक बनी गयो; अने मुनिराज पासेथी फरी फरी
धर्म सांभळवा माटे आतुरताथी तेमनी सामे जोई रह्यो. घणा श्रावको पण उपदेश
सांभळवा बेठा हता.
श्री मुनिराजे मुनिधर्मनो तथा श्रावकधर्मनो उपदेश आप्यो: सम्यग्दर्शन अने
आत्मज्ञान उपरांत ज्यारे चारित्रदशा थाय एटले के आत्मानो घणो अनुभव थाय
त्यारे जीवने मुक्तिदशा थाय छे. ते मुनिओ उत्तमक्षमा वगेरे दश धर्मोने पाळे छे, अने
हिंसादिक पांच पापो तेमने जराय होतां नथी एटले अहिंसा वगेरे पांच महाव्रत तेमने
होय छे.
–अने सम्यग्दर्शन थवा छतां जे जीवो मुनि न थई शके तेओ श्रावकधर्म पाळे
छे; तेने आत्माना ज्ञानसहित अहिंसा वगेरे पांच अणुव्रत होय छे. तिर्यंचगतिमां पण
श्रावकधर्मनुं पालन थई शके छे. माटे हे गजराज! तमे श्रावकधर्मने अंगीकार करो.