Atmadharma magazine - Ank 323
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: २२ : आत्मधर्म : भादरवो : २४९६
मुनिराज पासेथी धर्मनो उपदेश सांभळीने घणा जीवोए व्रत धारण कर्या.
हाथीने पण भावना जागी के जो हुं मनुष्य होत तो हुं पण उत्तम मुनिधर्मने अंगीकार
करत; आम मुनिधर्मनी भावना सहित तेणे श्रावकधर्म अंगीकार कर्यो, एटले
मुनिराजना चरणोमां नमस्कार करीने तेणे पांच अणुव्रत धारण कर्या......ते श्रावक
बन्यो.
सम्यग्दर्शन पामीने व्रतधारी थयेलो ते वज्रघोष हाथी वारंवार मस्तक नमावीने
अरविंद मुनिराजने नमस्कार करवा लाग्यो, सूंढ ऊंची–नीची करीने उपकार मानवा
लाग्यो. हाथीनी आवी धर्मचेष्टा देखीने श्रावको बहु राजी थया, अने ज्यारे मुनिराजे
प्रसिद्ध कर्युं के–आ हाथीनो जीव आत्मानी उन्नत्ति करतो करतो भरतक्षेत्रमां २३ मां
तीर्थंकर थशे,–त्यारे तो सौना हर्षनो पार न रह्यो; हाथीने धर्मात्मा जाणीने घणा प्रेमथी
श्रावको तेने निर्दोष आहार देवा लाग्या.
यात्रासंघ थोडो वखत ते वनमां रोकाईने पछी सम्मेदशिखर तरफ चाल्यो;
हाथीनो जीव थोडा भव पछी आ ज सम्मेदशिखर उपरथी मोक्ष पामवानो छे. तेनी
यात्रा करवा संघ जाय छे. अरविंद मुनिराज पण संघनी साथे विहार करवा लाग्या.
त्यारे हाथी पण अत्यंत विनयपूर्वक पोताना गुरुने वोळाववा माटे थोडे दूर सुधी
पाछळ पाछळ गयो........अंते फरीफरीने मुनिराजने नमस्कार करीने गदगदभावे
पोताना वनमां पाछो आव्यो.
हाथी हवे पांचव्रत सहित निर्दोष जीवन जीवे छे; पोते जे शुद्धआत्मा अनुभव्यो
छे तेनी फरीफरीने भावना करे छे. कोई पण जीवने ते हेरान करतो नथी, त्रसहिंसा
थाय तेवो खोराक खातो नथी; शांतभावथी रहे छे, ने सुकाई गयेला घास पान खाय
छे; कोईवार उपवास पण करे छे. चालती वखते पग पण जोईजोईने मुके छे.
हाथिणीनो संग तेणे छोडी दीधो छे. मोटा शरीरने लीधे बीजा जीवोने दुःख न थाय–ते
माटे शरीरने ते बहु हलावतो नथी, वनना प्राणीओ साथे शांतिथी रहे छे ने गुरुना
उपकारने वारंवार याद करे छे. हाथीनी आवी शांत चेष्टा देखीने वनना वांदरा अने
बीजां पशुओ पण तेना उपर प्रेम राखे छे ने सुकां घासपान लावीने तेने खवडावे छे.
पूर्वभवनो तेनो भाई कमठ,–के जे क्रोधथी मरीने झेरी सर्प थयो छे ते आ
वनमां ज रहे छे, जीवजंतुओने मारी खाय छे ने नवां पाप बांधे छे.