Atmadharma magazine - Ank 323
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : २४९६ आत्मधर्म : ३प :
स्वानुभूतिरूप आनंदना अभावमां जीव जन्म–मरणादिने करे छे तथा कर्मोने
बांधे छे. जो पोताना चिदानंद स्वभावनी स्वानुभूतिरूप परिणाम होय तो तेने
शुभाशुभभाव थता नथी, ने जन्म–मरण पण थता नथी. आवुं शुद्धोपयोगरूप
स्वानुभूतिनुं परिणमन चोथा गुणस्थानथी शरू थाय छे. निजघरमां आवेलो आत्मा,
जेने अनुभूति थई, सम्यग्दर्शन थयुं ते शुद्धोपयोग परिणति वडे मोक्षने करे छे.–पण
आ करवापणुं पर्यायमां छे, द्रव्यपणे तो जीव शाश्वत छे, तेने करवापणुं नथी. आवो
शुद्धजीव जेणे स्वानुभूति वडे उपादेय जाण्यो ते शुद्धोपयोगवडे पर्यायमां मोक्षने करे छे.
परमात्मप्रकाश ६८ मी गाथानी टीकामां कह्युं छे के–यद्यपि शुद्धात्मअनुभूतिना
अभावमां आत्मा शुभाशुभ उपयोगरूप परिणमतो थको जीवन–मरणने तथा
शुभाशुभकर्मबंधने करे छे, तथा शुद्धात्मअनुभूति प्रगट थतां ते शुद्धोपयोगरूप
परिणमतो थको मोक्षने करे छे; तोपण शुद्धपारिणामिक परमभावग्राहक एवा
शुद्धद्रव्यार्थिक नय वडे ते बंध–मोक्षनो कर्ता नथी. आ सांभळीने शिष्य पूछे छे के हे
प्रभो! शुद्धद्रव्यार्थिकस्वरूप शुद्ध निश्चयवडे जीव मोक्षनो पण कर्ता नथी, एटले
शुद्धनयथी मोक्ष नथी, अने जो मोक्ष नथी तो तेनुं अनुष्ठान (यत्न) पण वृथा छे तेनुं
समाधान:– मोक्ष छे ते बंधपूर्वक छे; शुद्धनिश्चयथी जीवने बंधन नथी एटले बंधथी
छूटवारूप मोक्ष शुद्धनिश्चयथी नथी. जो शुद्धनिश्चयथी पण जीवने बंधन होय तो तो
सदाय बंधन ज रहे, बंधननो अभाव कदी थाय ज नहीं. आ अर्थनुं द्रष्टांत कहे छे: एक
पुरुष सांकळथी बंधायेलो छे, अने बीजो एक पुरुष बंधनरहित छे; तेमां जे पहेलां
बंधायेलो छे तेने तो ‘तमे छूटया’ एवो व्यवहार लागु पडे छे; पण बीजो पुरुष–के जेने
बंधन हतुं ज नहीं–तेने, ‘तमे छूटया’ एम कहेवुं ते ठीक नथी.–ऊल्टो ते कोप करे के
भाई! हुं बंधायो’ तो ज क्यारे?–के तुं मने छूटो थवानुं कहे छे! तेम जीवने पर्यायमां
स्वानुभूतिना अभावे बंधन छे, अने पर्यायमां स्वानुभूतिवडे बंधनथी छूटीने मोक्ष
थाय छे;–आ रीते पर्यायमां बंध–मोक्ष तथा मोक्षनो प्रयत्न घटे छे; पण शुद्धनिश्चयथी
जोतां जीवने बंधन नथी, एटले बंधथी छूटवारूप मोक्ष पण शुद्धनिश्चयनयमां नथी. आ
रीते वीतराग निर्विकल्प समाधिमां रत जीवने मुक्तजीवसमान पोतानो शुद्धआत्मा
उपादेय छे, एम भावार्थ छे.
उपादेय करवो एटले तेमां तन्मय थईने अनुभव करवो. मात्र धारणाथी के
विकल्पथी कहे तेनी वात नथी; समयसारनी छठ्ठी गाथामां पण कह्युं छे के ज्ञायक–