साध्य पण तारामां छे. पछी कोनी ताकात छे के तारी साधनामां बाधना
करे? साधना एटले ज आनंद...ते आनंदसाधनामां कोई संयोगो नथी
तो अनुकूळ, के नथी प्रतिकूळ. साधनानी पाडोशमां रहेला क्रोधादि
परभावो ते पण साधनाने बाधा करी नथी शकता, केमके साधना तो
तेनाथी पण क्यांय ऊंडी छे. ते ऊंडाणमां साधक सिवाय बीजुं कोई
पहोंची शकतुं नथी.–परभावो तेमां पहोंची शकता नथी के परद्रव्यो तो
क्यांय दूर छे. आवी ऊंडी आत्मसाधनामां तत्पर हे साधक! तुं ज आ
जगतमां धन्य छो...अनंतानंत जीवोमां तुं ज महान छो, तें महान
चैतन्यनिधान प्राप्त करी लीधा छे. तुं स्वयं तो आनंदरूप छो...ने तारुं
दर्शन पण आनंदकारी छे. तने देखी–देखीने जगतना जीवो आत्माना
आनंदनी प्रेरणा मेळवे छे ने दुःखोने भूली जाय छे. कुंदकुंदस्वामी पण
कहे छे के हे साधक! तुं धन्य छो...तुं कृतकृत्य छो...तुं शूरवीर छो...तुं
पंडित छो.
आगळ जई रह्यो छे; वच्चे प्रतिकूळताना पहाड आवे तोपण तारा
उत्तम मार्गने रोकी शकवाना नथी. केवा महान छे तारा देव! केवा महान
तारा गुरु! केवो उत्तम तारो धर्म! ने केवो मजानो तारो मार्ग! आवा
देव–गुरु–धर्म तारा हृदयमां बिराजमान छे अने मार्गने साधवामां तेओ
सदाय तारी साथे ज छे, तोपछी तने कोई भय नथी, कोई चिंता नथी.
अहा! तने देखीने अमारो आत्मा पण अत्यंतपणे चाहे छे के तारा
मार्गे आवीए......ने तारा जेवा थईए.