Atmadharma magazine - Ank 323
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : २४९६ आत्मधर्म : ७ :
अंश पण रहे (मोक्ष करुं एवी ईच्छा ते पण लोभनो प्रकार छे–) त्यां सुधी मुक्ति न
थाय. ज्यां साक्षात् आत्माना अनुभवनो आनंद प्रगटे त्यां कोई ईच्छा रहेती नथी;
आवो अनुभव ज मोक्षनुं कारण छे. माटे कह्युं के विषय कषायोथी विरक्त थईने, अने
क्रोध–मान–माया–लोभने परिहरिने जे पोताना निर्मळस्वभावने ध्यावे छे ते उत्तम
मोक्षसुखने पामे छे. शुद्ध श्रद्धा–ज्ञान–चारित्र कहो के आत्माना निर्मळ स्वभावनुं ध्यान
कहो, ते मोक्षनुं कारण छे.
* श्रावण वद बीजे गुरुदेव खवडावे छे–
श्रावण वद बीजना आनंदकारी प्रवचनमां
गुरुदेवे कह्युं के आत्मा अखंड चैतन्यज्योति
आनंदथी परिपूर्ण छे; आवो आत्मा हुं छुं एम
पहेलां ज्ञानना बळथी निर्णय करवो, अने पछी
स्वसन्मुख थवाना तीव्र प्रयत्नथी ते स्वभावना
घोलनमां एकाग्र थईने तेनो अनुभव करतां ज
चंचळ–विकल्पना कल्लोलो दूर थाय छे ने
स्वसंवेदन–प्रत्यक्षमां निर्विकल्प आनंदना
अनुभवरूपी हलवानो स्वाद आवे छे. ल्यो, आ
स्वानुभवरूपी शीरो. आनंदना प्रसंगे लोको शीरो
जमे छे तेम अहीं आनंदना प्रसंगे वीतरागी संतो
स्वानुभवरूपी आनंदनो शीरो जमाडे छे,
स्वानुभव केम करवो ते रीत (७३ मी गाथामां)
बतावी छे.
हुं पोते ज्ञानस्वभावथी परिपूर्ण
स्वसंवेदनप्रत्यक्ष छुं–एवा अनुभवनो स्वाद कोई
अपूर्व, ईन्द्रियातीत छे. परभावोथी पार आवा
अनुभवनो स्वाद लेतांलेतां धर्मी जीवो पूर्ण
आनंदने साधे छे.–एमनुं जीवन धन्य–धन्य छे.