: आसो : २४९६ आत्मधर्म : १प :
अज्ञानदशामां आवा भावो घणीवार कर्या छे. ए जीव पण क्षणमां पोताना भावो
पलटीने, पोतानुं हित साधी शके छे. अत्यारनो आ पापी जीव पण क्षणमां केवो पलटो
करीने आत्मानो उद्धार करे छे ते तमे थोडा वखतमां वांचशो, अने त्यारे ए ज जीव
उपर तमने प्रेम आवशे.
(विशेष आवता अंकमां)
[आ पारसनाथ भगवानना दशभवनी पवित्रकथानुं सुंदर सचित्र पुस्तक
दीवाळी पहेलां तैयार थई जशे. दिवाळी प्रसंगे बोणीमां भेट आपवा माटे ते सुंदर
अने सर्वोपयोगी छे. मूल्य ८० पैसा.
– ब्र हरिलाल जैन.)
श्री गुरुकी
पंच–प्रसादी
(१) चैतन्यमां ऊंडे ऊतरतां गंभीर ज्ञानचेतना वडे वीतरागी
आनंदनो अनुभव प्रगटे छे. धर्मीनी ज्ञानचेतनाना अंतरना
अनुभवना परिणाम सूक्ष्म–गंभीर–ऊंडा छे.
(२) जे विकल्प करवामां ज ऊभो छे ने निर्विकल्प–ज्ञानचेतनामां
आवतो नथी ते ज विकल्पनो कर्ता छे; निर्विकल्प–ज्ञानचेतनामां
आव्या वगर विकल्पनुं कर्तापणुं (अज्ञान) छूटतुं नथी. अने
ज्यां अंतर्मुख निर्विकल्प अनुभवमां आव्यो त्यां विकल्प वगरनी
ज्ञानचेतना प्रगटी, तेमां विकल्पना कोई अंशनुं कर्तृत्व रहेतुं
नथी.
(३) विकल्पने जे पोतारूप जाणे तेने तेनुं कर्तापणुं केम छूटे? अने जे
अंतर्मुख ज्ञानभावमां तन्मय थयो तेने विकल्पनुं कर्तापणुं केम रहे?
(४) चैतन्यना आनंदनी अनुभूति विकल्पमां आवी शकती नथी.
(प) ज्ञानबगीचामां केलि करता करता ज्ञानीओ मोक्षने साधे छे.