– जे कर्मफळने भोगवती नथी.
– जे सदा आनंदरसने पीए छे.
आत्माने ज संचेते छे, आनंदसहित तेने ज अनुभवे छे, अने नैष्कर्मरूपे परिणमे छे
एटले के कर्मने करती नथी– भोगवती पण नथी. परिणति तो वळी गई अंतरमां, त्यां
कर्म तरफ वलण न रह्युं. एटले ते परिणतिमां कर्मने करवापणुं के कर्मफळने
भोगववापणुं नथी. आ रीते कर्मचेतना अने कर्मफळ–चेतना बंनेथी रहित
ज्ञानचेतनानो अनुभव ते धर्म छे, धर्मीने आवी ज्ञानचेतना होय छे. बहारना
जाणपणाथी आवी ज्ञानचेतना न प्रगटे; जेनुं ज्ञान रागादिथी भिन्न थईने अंतरना
चेतनस्वभावमां एकाग्र थयुं तेने ज ज्ञानचेतना प्रगटी छे.
नथी तेथी तेमनुं भेदज्ञान करीने शुद्ध ज्ञानचेतनानो अनुभव थई शके छे, ते अशक्य
नथी पण शक्य छे. पोते परिणाम बहारमां जोडे छे तेने बदले आत्मानी रुचि करीने
तेमां परिणाम जोडे तो तेनो अनुभव जरूर थाय छे.
ने परभावोमां उत्साहथी उपयोगने जोडे छे,–ते जीव स्वरूपनी चाह वगरनो बहिरात्मा
छे. भाई, तुं आत्मानी रुचि करीने तेमां उपयोग लगाव तो आ काळे पण आत्मानो
अनुभव थई शके छे. रागवडे