Atmadharma magazine - Ank 324
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २४९६ आत्मधर्म : १७ :
एवो अनुभव न थाय पण ज्ञानचेतना वडे तो आत्मानो साक्षात् अनुभव थाय छे;
अत्यारे पण ते थई शके छे. एवी ज्ञानचेतनानुं आ वर्णन छे.
‘ज्ञानचेतना’ तो ज्ञानचेतनारूप रहे छे, ते हर्ष–शोकरूप थती नथी, माटे
ज्ञानचेतनारूप थयेला ज्ञानी कर्मफळने भोगवता नथी. आत्मानुं जे संचेतन तेमां
कर्मफळनुं संचेतन नथी. अधूरापणुं, विकार के संयोग–एवुं जे कर्मफळ, तेनो अनुभव
शुद्धआत्माना संचेतनमां नथी.
सम्यग्दर्शन–पर्यायनो महिमा ते शुद्धआत्मानो ज महिमा छे. सम्यक्दर्शनपर्याय
शुद्धात्माना आश्रयथी प्रगटी छे, एटले ते सम्यग्दर्शनना महिमामां शुद्धआत्मद्रव्यनो
महिमा आवी ज गयो.
अहो, सम्यग्दर्शन करतांय चारित्रनो महिमा अनंतगुणो छे, एवी
चारित्रदशावाळा मुनिनां दर्शन पण क्यांथी!–पण एवी चारित्रदशाय शुद्धात्मामां
एकाग्रताथी ज प्रगटे छे; एटले जेणे आत्माने जाणी लीधो तेणे भगवानने अने
मुनिने पण देखी लीधा. पोतानो आत्मा पूर्ण आनंदपणे विद्यमान छे...आवा
स्वअस्तित्वनो स्वीकार करीने पर्याय तेमां घूसी गई त्यां ते पर्याय पण आनंदरूप
थई. क्यांय बीजे आनंद शोधवापणुं रहेतुं नथी.
अंतर्मुख थईने जे चेतना शुद्धआत्माना संचेतनमां आवी ते चेतनामां
परभावनो भोगवटो केम होय?–न ज होय; केम के शुद्धआत्मामां ते परभावनुं
अस्तित्व नथी, एटले शुद्धआत्माना भोगवटामां ते परभावनो (के १४८ कर्मनां
फळनो) भोगवटो नथी. आनुं नाम ज्ञानचेतना छे. आ ज्ञानचेतना आनंदरूप छे. तेथी
कहे छे के आवी ज्ञानचेतनारूप थईने सदाकाळ तमे आनंदरूप रहो.
ज्ञानचेतना आत्माना प्रशमरसने पीनारी छे, अज्ञानचेतनाथी तो कषायरसनो
कडवो अनुभव हतो, पण हवे अंतरनी ज्ञानचेतनावडे हे ज्ञानीजनो! तमे सदाकाळ
चैतन्यना परम आनंदरूप प्रशमरसने पीओ...भगवान आत्माना अमृतरसना
अनुभवमां ज तरबोळ बनो. जुओ, आचार्यदेवे केवुं सरस आशीर्वाद–वचन कह्युं छे!
सम्यग्दर्शन थयुं ने