Atmadharma magazine - Ank 324
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २४९६ आत्मधर्म : १९ :
. लिंग प्राभृत
भगवान श्री कुंदकुंदाचार्यदेवरचित अष्टप्राभृतनी कुल प०३
मूळ गाथाओना गुजराती अर्थ आ अंके पूरा थाय छे. दर्शनप्राभृत,
सूत्रप्राभृत, चारित्रप्राभृत, बोधप्राभृत, भावप्राभृत, अने
मोक्षप्राभृत आत्मधर्म अंक ३२१–३२२–३२३ मां आवी गया छे,
बाकीनां बे लिंगप्राभृत अने शीलप्राभृत आ अंकमां आपेल छे. आ
अष्टप्राभृतना रसास्वादनथी जिज्ञासुओए प्रसन्नता व्यक्त करी छे.
हालमां अष्टप्राभृत उपर चोथी वखत प्रवचन चाले छे.
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१. अरिहंतोने तेमज सिद्धभगवंतोने नमस्कार करीने, श्रमणलिंगनुं प्रतिपादक
प्राभृतशास्त्र समासथी कहुं छुं.
२. धर्म होय त्यां तेनुं लिंग होय छे, पण एकला बाह्य लिंग वडे धर्मनी संप्राप्ति थई
जती नथी; माटे हे जीव! तुं भावधर्मने जाण; बाह्यलिंगथी तारे शुं कर्तव्य छे?
३. जिनवरेन्द्रोए धारण करेला एवा मुनिलिंगने ग्रहण करीने पण, पापथी
मोहितमतिवाळो जे जीव लिंगीभावनो (अर्थात् भावलिंगनो) उपहास करे छे
ते तो लिंगधारकोमां नारद समान भेषधारी छे.
४. मुनिलिंगरूप भेख धारण करीने पण जे नाचे छे, गाय छे, वाजिंत्र वगाडे छे ते
पापथी मोहितबुद्धिवाळो जीव तिर्यंचयोनि–पशु जेवो छे, ते श्रमण नथी.
५. जे घणा प्रयत्नथी परिग्रहनो संग्रह करीने तेमां संमूर्छित रहे छे, तेनी रक्षा करे
छे अने आर्त्तध्यान करे छे ते पापथी मोहितबुद्धिवाळो जीव तिर्यंचयोनि–पशु
जेवो छे, ते श्रमण नथी.
६. द्रव्यलिंग धारण करीने पण जे कलह करे छे, वाद करे छे, जुगार रमे छे अने
नित्य घणा मान–गर्व सहित वर्ते छे,–ए रीते मुनिलिंग धारण करीने पण पाप
करे छे–ते जीव नरकमां जाय छे.