Atmadharma magazine - Ank 324
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: र० : आत्मधर्म : आसो : २४९६
७. पापवडे जेनो भाव हणाई गयो छे अने द्रव्यलिंगमां रहीने पण जे अब्रह्मने
सेवे छे ते पापथी मोहितमतिवाळो जीव संसाररूपी घोरवनमां भमे छे.
८. मुनिलिंग धारण करीने पण जे दर्शन–ज्ञान–चारित्रने तो धारण नथी करतो
अने आर्त्तध्यानने ध्यावे छे ते अनंत संसारी थाय छे.
९. जे विवाह योजे छे तेम ज खेतीकर्म, वेपार के जीवहिंसाना कार्य योजे छे,–ए
रीते मुनिलिंग धारण करीने पण पाप करे छे ते जीव नरकमां जाय छे.
१०. मुनिलिंग धारण करीने पण जे चोर लोकोमां, जूठ बोलनारमां के राजकार्यमां–
युद्ध–वादविवाद वगेरे करावे छे, तथा यंत्र–चोपाट–शतरंज वगेरे
तीव्रकषायवाळा कर्मोमां प्रवर्ते छे ते लिंगी नरकवासने पामे छे.
११. मुनिलिंग धारण करवा छतां, दर्शन–ज्ञान–चारित्रमां के तप–संयम–नियमरूप
नित्यकार्यमां वर्ततां जे दुःखी थाय छे, अथवा तेमां वर्तनारा बीजा जीवोने जे
पीडा उपजावे छे ते लिंगी नरकमां जाय छे.
१२. जे मुनिलिंग धारण करीने भोजनमां रसगृद्धि करे छे, कंदर्पादि
पापभावनाओमां वर्ते छे, तथा मायावी अने दुराचारी छे ते मुनिलिंगने
लजावनारो तिर्यंचयोनि–पशु जेवो छे, ते श्रमण नथी.
१३. द्रव्यलिंग धारण करीने पण जे आहार माटे आकुळताथी जाय छे, अने कलह
करीने आहार खाय छे, तथा बीजा साथे ईर्षा करे छे,–ते श्रमण जिनमार्गी
नथी.
१४. जे अदत्तदानने ग्रहण करे छे, परनिंदामां अने परने दूषण देवामां तत्पर छे, ते
श्रमण जिनलिंगनो धारक होवा छतां चोर जेवो छे.
१५. ईर्यापथसहित जिनलिंगनुं रूप धारण करीने पण जे उत्पातपूर्वक दोडे छे, पृथ्वी
खोदे छे, ते श्रमण नथी पण तिर्यंचयोनि अर्थात् पशु जेवो छे.
१६. बंधना भय वगर (अथवा बंधमां ज रत वर्ततो थको) जे अनाजने खांडे छे,
पृथ्वीने खोदे छे तथा अनेक वृक्षसमूहने उखेडे छे, ते श्रमण नथी पण
तिर्यंचयोनि अर्थात् पशु जेवो छे.
१७. जे हंमेशा महिलावर्ग प्रत्ये राग करे छे, अने बीजा पर दोषारोपण करे छे, तथा
पोते दर्शन–ज्ञानथी रहित छे, ते श्रमण नथी पण तिर्यंचयोनि अर्थात् पशु जेवो छे.