: २४ : आत्मधर्म : आसो : २४९६
२४. जेम अनाजमांथी फोतरांने ऊडाडी देतां मनुष्योनुं कांई द्रव्य चाल्युं जतुं नथी,
तेम तप–शीलमां कुशळ पुरुषो विष जेवा विषयोने फोतरांनी माफक छोडी दे छे.
२प. देहना अंगमां कोई वृत्ताकार–गोळ, लंबगोळ, भद्र अने विशाळ छे, ते सर्वे
अंगोनी प्राप्तिमां पण शील सौथी उत्तम छे.
२६. कुसमयना सेवनथी जे मूढ छे अने विषयमां लोलुप छे–ते पुरुषो, तेम ज तेनो
संग करनारा जीवो पण, पाणीना रेंटनी जेम संसारमां भ्रमण करे छे.
२७. विषयोमां रागथी रंजितपणावडे आत्मामां बंधायेली जे कर्मग्रंथि, तेने कृतार्थ
पुरुषो तप–संयम अने शीलगुणवडे छेदे छे.
२८. जेम रत्नोथी भरेलो समुद्र शोभे छे, तेम शील सहित जीव तप–विनय–शील–
दानादि रत्नोथी शोभतो थको उत्कृष्ट निर्वाण पामे छे.
२९. श्वान गर्दभ गाय वगेरे पशु अने महिला–तेमनो मोक्ष थतो देखातो नथी; सर्वे
जीवोमां जे चोथा पुरुषार्थने साधे छे तेमनो ज मोक्ष जोवामां आवे छे.
३०. जो विषयोमां लोलूप एवा ज्ञानवडे मोक्ष सधातो होत तो ते सात्यकिपुत्र रुद्र–के
जे दशपूर्वनो जाणनार हतो ते केम नरके गयो? (पहेलां ते मुनि थईने दशपूर्व
भण्यो हतो, पण पछी भ्रष्ट थई, विषयनी लोलूपताथी नरकमां गयो.)
३१. जो शील वगरना एकला ज्ञानवडे ज बुधजनोए विशुद्धता कही होय तो,
दशपूर्वना जाणनारनो भाव पण निर्मळ केम न थयो?
३२. जे जीव विषयोथी विरक्त छे ते, नरकनी प्रचुर वेदनाने दूर करीने, त्यांथी
नीकळीने अर्हत्पद पामे छे–एम वर्द्धमानजिने कह्युं छे.
३३. आ रीते, लोकालोकने जाणनारा प्रत्यक्ष ज्ञानदर्शी एवा जिनवरोए, शीलवडे
अतीन्द्रिय मोक्षपदनी प्राप्ति थवानुं घणा प्रकारे कह्युं छे.
३४. आत्माना सम्यक् ज्ञान–दर्शन–चारित्र–तप–वीर्यरूप जे पंचाचार छे ते पवन
सहित अग्निनी माफक पुरातन कर्मोने दग्ध करे छे.
३प. विषयोथी विरक्त, जितेन्द्रिय, धीर अने तप–विनय–शील सहित एवा पुरुषो
अष्टकर्मोने अत्यंत दग्ध करीने सिद्ध थया, ने सिद्धगतिने पाम्या.