Atmadharma magazine - Ank 324
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: २६ : आत्मधर्म : आसो : २४९६
(स. गा. ३२० नां प्रवचनोमांथी......लेखांक त्रीजो)
आत्मानो शुद्धस्वभाव केवो छे? अने तेनी केवी
***
शुद्ध आत्मानो स्वभाव शुं छे अने धर्मीजीव पोताना आत्माने केवो अनुभवे छे
तेनुं आ वर्णन छे. ‘हुं शुद्ध छुं–शुद्ध छुं’ एवी धारणाथी के एवा विकल्पथी पर्यायमां
आनंद झरतो नथी; पर्यायमां आनंद न झरे त्यां सुधी ज्ञान साचुं नथी. आत्मानो
परमार्थ स्वभाव लक्षमां लईने पर्याय तेमां अभेद थतां ज पर्यायमां परम आनंदनां
मोती झरे छे. ‘शुद्ध द्रव्यस्वभाव छे’ एम ज्यां द्रष्टिमां लीधुं त्यां पर्यायमां पण शुद्धता
थई छे. शुद्धद्रव्यना आश्रये थयेली सम्यग्दर्शनादि शुद्धपर्यायो ‘आत्मारूप’ छे एम
पुरुषार्थसिद्धिउपायमां (गाथा. २२, ३प, तथा ३९ मां) अमृतचंद्राचार्यदेवे कह्युं छे.–
जीवाजीवादिनां तत्त्वार्थानां सदैव कर्तव्यम्।
श्रद्धानं विपरीताभिनिवेशविविक्तं आत्मरूपं तत्।२२।
एटले के जीव–अजीवादि तत्त्वार्थोनुं विपरीत–अभिनिवेशरहित श्रद्धान सदाय
कर्तव्य छे, –के जे श्रद्धान ‘आत्मरूप’ छे.