Atmadharma magazine - Ank 324
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 30 of 52

background image
: २८ : आत्मधर्म : आसो : २४९६
सन्मुख थयेली ते शुद्धपर्याय कांई ‘अनात्मरूप’ नथी, ते ‘आत्मरूप’ ज छे, आत्मा
साथे तेने तन्मयपणुं छे, पर साथे के राग साथे ते तन्मय नथी. आवी
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र पर्यायवडे शुद्धआत्मानुं ध्यान निरंतर कर्तव्य छे.
पर्यायमां आत्मा अक्रिय नथी पण सक्रियपणे पोतानी निर्मळपर्यायने करे छे. ‘करुं’
एवो भेद के विकल्प नथी. आत्मानी पर्यायमां मोक्षमार्ग अने मोक्ष बंने छे, पण ते
व्यवहारनयनो विषय छे; शुद्धनयना विषयमां एवा भेद न आवे. शुद्धनयनो
विषय अभेद एकरूप शुद्ध छे.
छठ्ठी गाथामां आचार्यदेवे कह्युं के ज्ञायक आत्मा शुद्ध छे.–पण क्यारे? के
ज्यारे समस्त अन्य द्रव्यना भावोथी भिन्नपणे उपासवामां आवे त्यारे तेने
‘शुद्ध’ कहेवाय छे. ध्रुवस्वभावसन्मुख पर्याय थई त्यारे निर्विकल्प थई, एटले
‘प्रमत्त छुं के अप्रमत्त छुं’ एवा कोई भेदनुं लक्ष तेने न रह्युं; आ रीते पर्याय
पोताना अखंड स्वभावसन्मुख लीन थई त्यारे ते आत्माने शुद्ध कह्यो. ‘शुद्ध’
कहेतां द्रव्ये पण शुद्ध ने पर्याये पण शुद्ध,–एवा आत्माने शुद्ध कह्यो; तेणे
ज्ञायकस्वभावनी उपासना करी, तेणे शुद्धआत्माने उपादेय कर्यो.–आ रीते ‘पर्याय
द्रव्यमें घूस गई’ एटले के अभेद थई त्यारे तेमां द्रव्य उपादेय थयुं. जेने आवी
पर्याय थई तेने ज द्रव्यने शुद्ध–अक्रिय कहेवानो हक्क छे. पर्यायने आत्मामां एकाग्र
कर्या वगर एकलुं शुद्ध–शुद्ध कहे ते तो विकल्पवाळुं ज्ञान छे,–ते तो शास्त्रना
शब्दोनी मात्र धारणा छे.
भाई, पर्याय अने द्रव्य बंने छे...बंनेने जाणो. बंनेने जाणीने द्रव्यस्वभाव
सन्मुख थवुं ते ध्यान छे, ध्यान ते पर्याय छे, ते ध्यायपर्याय पण आत्मानी ज छे;
कांई बीजानी नथी. आत्मामां ते पर्याय तन्मय थई त्यां ते पर्यायनुं लक्ष छूटी गयुं
ने अभेदवस्तुनो अनुभव रह्यो. त्यां ‘हुं ध्यान करुं ने आ मारुं ध्येय’ एवा कोई
भेद नथी, विकल्प नथी. द्रव्य साथे पर्याय भेगी छे पण ज्ञानीने पर्यायबुद्धि नथी.
पर्यायने द्रव्यसन्मुख करीने अखंड द्रव्यने प्रतीतमां लीधुं छे, एटले पोताने पूर्ण ज
देखे छे.
आत्मामां जे त्रिकाळ द्रव्यस्वभाव छे ते ध्रुव छे. तेने निष्क्रिय कह्यो छे,
एटले के ध्रुव ते उत्पाद–विनाशरूप नथी. मोक्षमार्ग के बंधमार्गनी जे पर्यायो छे ते
सक्रिय छे, उत्पाद–व्ययरूप छे. निश्चय सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ते पण सक्रिय
परिणाम छे, ध्रुवमां बंध–मोक्षरूप क्रिया नथी.