Atmadharma magazine - Ank 324
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २४९६ आत्मधर्म : ३१ :
करनारनी द्रष्टि तो तेमां घूसी जाय एटले के पर्यायमां पण शुद्धता प्रगटे. पोताने
द्रष्टिमां तो आव्यो नथी तो त्रिकाळ शुद्ध कई रीते नक्की कर्यो?
–आपे कह्युं माटे मानी लीधुं!
ए मान्यता साची न कहेवाय, खरेखर कह्युं ते मान्युं नथी. खरेखर त्यारे मान्युं
कहेवाय के ज्यारे पोताना वेदनमां आवे. जे शुद्धनो अनुभव करे तेने ‘शुद्ध’ कह्यो छे
सांभळीने वातो करे पण पोते अनुभव न करे तो एने शुद्ध नथी कहेता. अंतरमां
अनुभव वडे शुद्ध चैतन्य ध्रुव आत्मानी पवित्रता ज्यारे प्रगटी त्यारे पर्याय द्वारा ‘हुं
आखो शुद्ध छुं’ एम प्रतीतमां ल्ये छे; पण जेने शुद्धआत्मा द्रष्टिमां आव्यो नथी,
अनुभवमां आव्यो नथी ते ‘ आत्मा शुद्ध छे’ एवी प्रतीत क्यांथी लाव्यो? कोईके कह्युं
माटे मानी लीधुं–एने साची प्रतीत कहेवाय नहीं. अंतर्मुख थईने पोतानी द्रष्टिमां आवे
त्यारे साचुं मान्युं कहेवाय. भूतार्थद्रष्टि वडे ज्यारे शुद्धात्मा अनुभवमां लीधो त्यारे नवे
तत्त्वनुं साचुं ज्ञान थयुं. तत्त्वार्थश्रद्धानमां निश्चयथी शुद्ध आत्मानी श्रद्धा छे, आवी श्रद्धा
ते सम्यग्दर्शन छे, ने ते सम्यग्दर्शन आत्मारूप छे, आत्मानुं स्वरूप छे. ध्रुवस्वभावमां
एकाग्रतारूप जे अनुभवदशा छे ते आत्मारूप दशा छे; अने ध्रुवना लक्षे आवी पर्याय
प्रगट करवी ते कर्तव्य छे.
ध्रुव तो ध्रुव छे, तेमां कांई करवापणुं नथी; पण ‘आ ध्रुव छे’ एम लक्षमां
लईने पर्याय तेमां एकाग्र थई त्यां पर्यायमां सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप कार्य थाय
छे, एटले ते जीवनुं कर्तव्य छे. ध्रुवस्वभावने ध्येय बनावीने तेमां एकाग्रता वडे
निर्मळपर्याय थई जाय छे तेने कर्तव्य कह्युं; पण ‘निर्मळपर्याय करुं’ एवा विकल्प वडे
कांई निर्मळपर्याय थती नथी. शुद्धद्रव्यने निश्चय कह्यो छे. अने तेना आश्रये जे
निर्मळपर्याय मोक्षनी के मोक्षमार्गनी प्रगटी तेने व्यवहार कह्यो छे.
प्रश्न:– त्रिकाळी ध्रुवने तो बंध–मोक्ष नथी?
उत्तर:– पण ज्यां एवा त्रिकाळी स्वभावने द्रष्टिमां लईने पर्याय तेमां अभेद
थई त्यां ते पर्यायमां बंधननो अभाव थईने मोक्षमार्ग प्रगटी गयो छे.–आवी पर्याय
प्रगटी त्यारे त्रिकाळ स्वभावनी खबर पडी, एना वगर क्यां खबर हती? आ रीते
द्रव्यमां बंध–मोक्ष नथी ने पर्यायमां बंध–मोक्ष छे, तेथी पर्यायमां मोक्षनो उद्यम छे.–कई
रीते? के पर्यायने पोताना सिद्धसमान शुद्धआत्मस्वभावमां एकाग्र करीने निर्विकल्प
वीतरागी समाधि वडे तेने उपादेय करवो, ते ज मोक्षनो उद्यम छे.