Atmadharma magazine - Ank 324
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: ३४ : आत्मधर्म : आसो : २४९६
नहीं? द्रव्यसन्मुख थईने तेने प्रतीतमां लेतां जे सम्यक्त्व थयुं ते पर्याय छे.–
मोक्षमार्गमां तेने कर्तव्य कह्युं छे.
प्रश्न:– पर्यायने कर्तव्य मानतां पर्यायबुद्धि थई जशे तो? उत्तर:–ना; अज्ञानीने
तो पर्यायबुद्धि छे ज; पण जे ज्ञानी थयो, ने द्रव्यनुं जेने भान थयुं तेना द्रव्य–पर्याय
केवा छे तेनी आ वात छे. ज्ञानी पर्यायने जाणे छे पण तेने पर्यायबुद्धि छूटी गई छे.
पर्यायने जाणवा मात्रथी कांई पर्यायबुद्धि थई जती नथी, केमके अखंड द्रव्यनी
द्रष्टिपूर्वक पर्यायने पर्यायरूपे जाणे छे. जीवो........एम कहीने बीजी ज गाथामां
आचार्यदेवे जीवनुं स्वरूप समजाव्युं छे, तेमां दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप निर्मळपर्यायमां
स्थित जीवने स्वसमय कह्यो छे. अहा, दिगंबर संतोनी शैलीमां वीतरागी सत्यनी
सनातन धारा वहे छे.
भाई! आवुं सत्य पामीने तारुं काम तें कर्युं के नहीं? एटले के पर्यायने
अंतरमां वाळीने आत्माने जाण्यो के नहीं? जिनवरदेवे कहेला आत्माना स्वरूपने तुं
जाण. बहारनुं लक्ष फेरवीने अंदर तारा द्रव्य उपर लक्ष कर. उपयोगने स्वद्रव्यमां
एकाग्र कर्यो त्यां पर्याय द्रव्यमां पेठी अथवा अभेद थई एम कहेवाय छे. अने त्यां
चैतन्यप्रभु महासागरमां आनंदना तरंग ऊछळ्‌या अहा, चैतन्यप्रभु अनंतगुणनो
महासागर तेनाथी मोटो सत्–साहेबो दुनियामां बीजो कोई नथी. अंर्तमुख थईने
आवा आत्माने जाणवो–ध्याववो ते मोक्षमार्ग छे...ते आ गाथानो सार छे.
जय चिदानंद.
मारुं जीवन
हुं–आत्मा शरीर वगर राग वगर कुटुंब वगर
जीवी शकुं छुं. तो जेना वगर हुं जीवी शकुं छुं तेनो मोह
शो? तेमां ममत्व शेनुं?
ज्ञानवडे हुं जीवुं छुं, ज्ञान मारुं जीवन छे,–एना
वगर हुं क्षणमात्र जीवी न शकुं. माटे ज्ञानमां ज मारुं