खरेखर मारे परनुं ध्यान करवानुं नथी पण स्वनुं ध्यान करवानुं छे. स्वने ध्यावतां
क्षायिक सम्यक्त्वादि वीतराग–निर्दोष पर्यायो प्रगटे छे, तेमां ज पांचे परमेष्ठीपद समाई
जाय छे.–आम निर्णय करीने हे जीव! तारा परमार्थ आत्माने ज तारा ध्याननो विषय
बनाव. पंचपरमेष्ठी भगवंतोना गुण तेमनामां छे ने तेमना जेवा ज मारा गुणो
मारामां छे–माटे मारो आत्मा ज मने शरणरूप छे, ते ज मारूं ध्येय छे.
उपयोगने एकाग्र करतां परमेष्ठी जेवा गुण पोतामांथी प्रगट थाय छे; आ रीते मारो
आत्मा ज परम ईष्ट छे, पांचे परमेष्ठीपदरूप वीतराग पर्याय मारा आत्मामां ज रहेल
छे;–एम धर्मी पोताना आत्माने ज ध्येय बनावीने तेमां उपयोगने जोडे छे.
आपनारो छे. आत्मा पोते अंतर्मुख थईने पोताना उपर प्रसन्न थयो त्यां
पंचपरमेष्ठीनी प्रसन्नता पण तेमां आवी ज गई. तेनी पर्यायमां ज पंचपरमेष्ठी आवी
गया, ने आराधना पण तेमां ज आवी गई, पोताना शुद्धस्वरूपने ध्यावतां पांचे
परमेष्ठीनुं ध्यान थई जाय छे. आत्माना ध्यानमां रत्नत्रय प्रगट थतां ते पर्याय पोते
ज ‘साधु’ थई, केवळज्ञान थतां ते पर्याय पोते ज अरिहंत अने सिद्ध थई. पांचे निर्मळ
पर्यायो आत्मामां ज समाय छे, क्यांय बहार नथी.