Atmadharma magazine - Ank 324
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २४९६ आत्मधर्म : ३प :
पांच परमेष्ठी
क्यां रहे छे?
मारा आत्मामां रहे छे.
हे जीव! आराधना अखंड करवी होय तो शुद्ध आत्मामां झंपलाव
पंचपरमेष्ठी भगवंतोना जेटला गुणो छे ते बधाय गुणो मारा आत्मामां
समायेला छे. पांचे परमेष्ठीना बधा गुणोनी ताकात मारा आत्मामां भरी छे,–माटे
खरेखर मारे परनुं ध्यान करवानुं नथी पण स्वनुं ध्यान करवानुं छे. स्वने ध्यावतां
क्षायिक सम्यक्त्वादि वीतराग–निर्दोष पर्यायो प्रगटे छे, तेमां ज पांचे परमेष्ठीपद समाई
जाय छे.–आम निर्णय करीने हे जीव! तारा परमार्थ आत्माने ज तारा ध्याननो विषय
बनाव. पंचपरमेष्ठी भगवंतोना गुण तेमनामां छे ने तेमना जेवा ज मारा गुणो
मारामां छे–माटे मारो आत्मा ज मने शरणरूप छे, ते ज मारूं ध्येय छे.
बहारमां परनुं शरण लेवा जतां विकल्प ज ऊठे छे, तेमांथी परमेष्ठी जेवा गुण
प्रगट थतां नथी, अंतरमां पोताना आत्माने जाणीने तेनुं शरण लेतां, एटले के तेमां
उपयोगने एकाग्र करतां परमेष्ठी जेवा गुण पोतामांथी प्रगट थाय छे; आ रीते मारो
आत्मा ज परम ईष्ट छे, पांचे परमेष्ठीपदरूप वीतराग पर्याय मारा आत्मामां ज रहेल
छे;–एम धर्मी पोताना आत्माने ज ध्येय बनावीने तेमां उपयोगने जोडे छे.
पांच परमेष्ठीनी जेम चार आराधना पण आत्मामां ज रहेली छे; तेथी पोतानो
आत्मा ज आत्माने शरण छे. आत्मा पोते ज पोताने आराधनाना आशीर्वाद
आपनारो छे. आत्मा पोते अंतर्मुख थईने पोताना उपर प्रसन्न थयो त्यां
पंचपरमेष्ठीनी प्रसन्नता पण तेमां आवी ज गई. तेनी पर्यायमां ज पंचपरमेष्ठी आवी
गया, ने आराधना पण तेमां ज आवी गई, पोताना शुद्धस्वरूपने ध्यावतां पांचे
परमेष्ठीनुं ध्यान थई जाय छे. आत्माना ध्यानमां रत्नत्रय प्रगट थतां ते पर्याय पोते
ज ‘साधु’ थई, केवळज्ञान थतां ते पर्याय पोते ज अरिहंत अने सिद्ध थई. पांचे निर्मळ
पर्यायो आत्मामां ज समाय छे, क्यांय बहार नथी.
दुःखथी छूटवा माटे शरण कोण? के पोतानो आत्मा, तेने ध्यावतां दुःख रहेतुं