Atmadharma magazine - Ank 324
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २४९६ आत्मधर्म : ७ :
मनुष्यलोकमां आवतां तेने दुःख न थयुं, पण एनी भावना जागी के मनुष्यपर्याय धन्य
छे, मनुष्यपर्यायमां मुनि थईने चारित्र अंगीकार करीशुं, मुनिदशा महा आनंददायक
छे.–आम मुनिदशानी भावना भावतां भावतां, जिनेन्द्र भगवानना शरणपूर्वक ते जीव
स्वर्गमांथी चवीने मनुष्यलोकमां अवतर्यो–क्यां अवतर्यो? ते हवे ना प्रकरणमां आप
वांचशो. त्यारपहेला कमठनो जीव क्यां छे ते जोई लईए.
कमठनो जीव जे सर्प थयो हतो ते मरीने पांचमी नरकमां गयो ने असंख्य वर्ष
सुधी बहु ज दुःखी थयो. एनी भूख–तरसनो कोई पार न हतो, एना शरीरनां रोज
हजारो कटका थई जता; लोढानो गोळो पण ओगळी जाय एवी तो ठंडी हती, करवत
अने भालाथी तेनुं शरीर कपातुं हतुं; आत्मानुं ज्ञान तो तेने हतुं नहीं, ने सारा भाव
पण न हता, अज्ञानथी अने भूंडा भावोथी ते बहु ज दुःखी थयो हतो. पूर्वभवना तेना
भाई प्रत्येना क्रोधना संस्कार हजी पण तेणे छोड्या न हता, ते क्रोधमां ने क्रोधमां
नरकमांथी नीकळीने एक मोटो भयंकर अजगर थयो.
[] अग्निवेग–मुनि अने अजगर
आपणा कथानायक भगवान पारसनाथनो जीव स्वर्गमांथी चवीने जंबुद्वीपना
विदेहक्षेत्रमां अवतर्यो. आ जंबुद्वीपनी वच्चे मोटो मेरुपर्वत छे, तेनी पूर्व अने पश्चिम
बंने बाजु विदेहक्षेत्र छे. पूर्व तरफना विदेहमां सीमंधर अने युगमंधर नामना तीर्थंकर
सदाय बिराजे छे ने दिव्यध्वनिमां आत्मानुं स्वरूप समजावे छे. हजारो केवळी–अरिहंत
भगवंतो अने लाखो जिनमुनिओ ए देशमां विचरे छे. त्यां करोडो मनुष्यो आत्माने
ओळखे छे ने धर्मने साधे छे. ए देशनी शोभा अद्भुत छे. देवो पण त्यां भगवानना
दर्शन करवा आवे छे. त्यां साचा जैनधर्म सिवाय बीजा कोई खोटा धर्मो चालता नथी.
त्यां ठेरठेर अरिहंत भगवानना मंदिरो छे, तेमां मणि–रत्नोनी अद्भूत मूर्तिओ छे.
बीजा मतना मंदिर त्यां होतां नथी. त्यां दिगंबर जैन साधुओ ज विचरे छे. बीजा
कुलिंगी साधुओ त्यां होता नथी.
आवा सुंदर विदेहक्षेत्रना पुष्कलावती देशमां वच्चे विजयार्ध पर्वत छे. चक्रवर्ती
ज्यारे छ खंड जीतवा नीकळे छे अने विजयनो अर्धो भाग पूरो थाय छे त्यारे आ
‘विजय–अर्ध’ पर्वत आवे छे. आ विजयार्ध पर्वत उपर अत्यंत मनोहर शाश्वत
जिनमंदिर छे; तेना उपर बंने दिशामां मोटा मोटा नगरनी हारमाळा छे, त्यां विद्याधर–