दीवाळी अंक २४९७ आत्मधर्म : ७ :
पोताना स्वभावनी एकत्वभावनारूपे परिणमेला ज्ञानी धर्मात्मा एम अनुभवे
छे के हुं तो मारा एकत्व स्वरूपमां ज छुं; सघळाय परभावो माराथी बाह्य छे.
चैतन्यचिंतामणि एवो हुं पोते मारा अनंत दिव्य ज्ञान–आनंदथी समृद्ध छुं; पछी अनेक
प्रकारनां बाह्य भावोनुं मारे शुं काम छे?
–आवा आत्माना अनुभवरूप शुद्धभाव वडे भगवाने मोक्षने साध्यो, ने धर्मी
जीवो पण आत्माना एवा ज अनुभव वडे ते ज मार्गे मोक्षने साधे छे. मोक्षने
साधवानी आ रीत जाणीने मुमुक्षु महा आनंदित थाय छे. वाह! जे मार्गे भगवान
मोक्ष पधार्या ते ज मार्ग मने प्राप्त थयो.
श्रमणो जिनो तीर्थंकरो ए रीत सेवी मार्गने,
सिद्धि वर्या, नमुं तेमने; निर्वाणना ते मार्गने.
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साधक पोताना सिद्धपदने
कई रीते साधे छे?
जेणे आत्मा साधवो होय तेणे ते केवी रीते साधवो? ते वात छे.
जड देहादिथी आत्मा जुदो छे, ने पोताना ज्ञानादि स्वभावोथी अभिन्न छे.
ज्ञान वगरनो कोई जीव होतो नथी; अने जीव सिवाय बीजामां क््यांय
ज्ञान होतुं नथी. –आ रीते ज्ञानस्वरूप आत्मानो निर्णय करीने पर द्रव्यथी
अत्यंत भिन्नपणे तेने साधवो.
देहनी चीजमां आत्मा नथी, ने आत्मामां देह नथी. ज्ञानमां
आत्मा छे ने आत्मामां ज्ञान छे. देह तो दूर रह्यो, विकल्प ऊठे ते पण
आत्मानी चीज नथी. विकल्पमां एकता करतां आत्मा अनुभवमां नहीं
आवे. विभ्रमथी ज विकल्पो पोताना स्वरूपे भासे छे. पण ज्ञान कदी पण
विकल्परूप थतुं नथी. आत्मा सदाय ज्ञानस्वरूप छे.
आ रीते भेदज्ञान वडे पोताना ज्ञानस्वरूप आत्मानो अनुभव
करीने धर्मी जीव मोक्षमार्गने पोतामां ज परिणमावे छे. रागने पोतामां
तन्मय नथी करतो, तेनाथी तो जुदो पडीने आत्मस्वभावमां तन्मयता वडे
मोक्षमार्ग प्रगट करे छे; आ रीते साधक पोताना सिद्धपदने साधे छे.