Atmadharma magazine - Ank 325
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: ८ : आत्मधर्म दीवाळी अंक २४९७
अचिंत्य शक्तिवाळो सर्वज्ञस्वभावी देव
आत्मा अचिंत्य शक्तिवाळो सर्वज्ञस्वभावी देव छे. तेनी आराधना
वडे सम्यक्त्वथी मांडीने सिद्धपद सुधीनां सर्व कार्य सिद्ध थाय छे.
(समयसार कळश १४४ना प्रवचनमांथी)
अनंत सिद्ध भगवंतो सर्वज्ञपणे बिराजे छे. लाखो अरिहंत भगवंतो सर्वज्ञपणे
बिराजे छे. करोडो जीवो मुनिदशामां सर्वज्ञपदने साधी रह्या छे. असंख्य जीवो
पंचमगुणस्थाने सर्वज्ञपदने साधी रह्या छे. असंख्य सम्यग्द्रष्टि जीवो सर्वज्ञपदने साधी
रह्या छे. ने शक्तिपणे अनंतानंत जीवोमां सर्वज्ञता भरेली छे. सर्वज्ञस्वभावी आवो
आत्मा अचिंत्य शक्तिवाळो देव हुं पोते छुं–एम जेणे स्व वस्तुनो परिग्रह कर्यो (श्रद्धा
ज्ञानमां तेनी पक्कड करी) तेने रागनो परिग्रह न रह्यो, ‘राग हुं’ एवी पक्कड न रही.
अहा, हुं ज सर्वज्ञस्वभावी, अचिंत्य शक्तिवाळो देव, पछी परभावना बीजा परिग्रहनुं
शुं काम छे? –केमके सर्वज्ञतामां ज सर्व अर्थनी सिद्धि छे.–सर्वज्ञता थई त्यां
आत्मस्वरूपनां सर्वकार्य सिद्ध थई गया, ज्ञान पूरुं थयुं, आनंद पूरो थयो, सर्वे गुणो
पूरा थया, पछी हवे बीजुं कोई प्रयोजन बाकी नथी रह्युं. पूर्ण अतीन्द्रिय सुखसहित
सर्वज्ञता ज्यां सिद्ध थई पछी बीजा पदार्थना संग्रहने ते शुं करे? माटे सर्वज्ञस्वरूपने
अनुभवनार ज्ञानीने अन्य कोई परवस्तुनो परिग्रह नथी. ज्ञानीने शुद्ध ज्ञानपदना
चिन्तनथी–अनुभवनथी ज्यां परम सुखरूप कार्यसिद्धि थाय छे त्यां, शुद्ध स्वरूपना
अनुभवथी बाह्य एवा रागादि विकल्पोनुं शुं काम छे? शुद्ध चैतन्यपदनो ज्यां अनुभव
छे त्यां अन्य पदार्थनुं स्मरण कोण करे? अहा! पोतामां शुद्ध जीववस्तु ज्ञानमात्र
अनुभव चिंतामणि–रत्न छे, ए अनुभव–चिंतामणिरत्न वडे परमात्मपद ने अतीन्द्रिय
सुख प्राप्त थाय छे, –पछी त्यां शुभ–अशुभ विकल्पोना संग्रहनुं शुं प्रयोजन छे?
एनाथी तो कोई कार्यसिद्धि थती नथी. सर्वज्ञभावथी भरेलो अचिंत्य महिमावाळो
आत्मा पोते परम पूज्य देव छे, ए देव जेने प्रसन्न थया ते पछी बीजाने केम सेवे?
भगवान जेने भेटया ते भीखारीने केम सेवे?
जुओ, आ सर्वज्ञनो धर्म!! आत्मानी सर्वज्ञता बतावे एवो आ सर्वज्ञनो धर्म
छे.....तेने उत्साहथी आराधो......
(अनुसंधान माटे जुओ पानुं २६)