Atmadharma magazine - Ank 325
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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दीवाळी अंक २४९७ आत्मधर्म : ९ :
तुं स्थाप निजने मोक्षपंथे
(समयसार गा. ४१२)
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप परिणाम ते मोक्षमार्ग छे; तेमां आत्माने स्थाप!
अनादिथी परभावमां एकत्वबुद्धि करीने तेमां आत्माने स्थाप्यो हतो, तेने बदले हवे
तेमांथी पाछो वाळीने स्वद्रव्यनी सन्मुखताथी प्रगटेला सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रमां
तारा आत्माने स्थाप! तेमां तन्मय थईने परिणम. –ते परमार्थ मोक्षमार्ग छे.
बीजी गाथामां कह्युं हतुं के दर्शन–ज्ञान–चारित्रमां स्थित जीव स्वसमय छे.
अहीं हवे शास्त्र पूरुं करतां ४१२ मी गाथामां कहे छे के हे भव्य! तारा आत्माने
दर्शन–ज्ञान–चारित्रमां निश्चळपणे स्थाप, निरंतर स्थाप. एकाग्र थईने दर्शन–ज्ञान–
चारित्रने ज ध्याव; ज्ञानचेतनामय थईने तेनो ज अनुभव कर. निर्मळपर्यायने
ध्याववानुं–अनुभववानुं कह्युं तेनो अर्थ, ते पर्यायमां अभेद थईने परिणमेला शुद्ध
आत्माने ज ध्याव–अनुभव, तेमां स्थिर था! त्यां आनंद छे......त्यां ज विश्रांति–परम
शांति छे. –आवो ज मोक्षमार्ग अरिहंतोए उपदेश्यो छे.
शुद्धआत्माना आश्रये थयेला जे निश्चय दर्शन–ज्ञान–चारित्र छे ते ज एक
नियमरूप मोक्षमार्ग छे. आवा मोक्षमार्गमां जे पुरुषो स्थित थाय छे तेओ शीघ्र
समयना सारने पामे छे. भाई, आ मोक्षना मारगमां आववानी वात छे.
ज्यां आत्मा छे त्यां तुं शोध; ज्यां आत्मा नथी तेना ममकार वडे आत्मा नहीं
मळे, द्रव्यलिंगमां के रागमां भगवान आत्मा नथी, तेथी जेओ द्रव्यलिंगने के रागने
पोतापणे अनुभवे छे तेओ शुद्धआत्माने देखता नथी, अनुभवता नथी. एटले
मोक्षमार्गने पामता नथी. तेओ तो रागने ज अनुभवता थका अशुद्ध आत्माने देखे
छे.
कोई कहे के सम्यग्दर्शन सहितनो शुभराग–व्यवहार ते मोक्षनुं कारण थाय. –
तो तेम पण नथी. जेने सम्यग्दर्शन थयुं ने शुद्धआत्मा अनुभवमां आव्यो ते तो
रागथी आत्माने जुदो जाणे छे. जेने जुदो जाण्यो ते मोक्षनुं कारण केम थाय?
शुद्धआत्माना अनुभवथी मोक्ष थाय छे, ने ते अनुभवमां रागनो अभाव छे. माटे कहे
छे के हे जीव! राग वगरना निश्चय सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप जे परमार्थ मोक्षमार्ग
तेमां तुं तारा आत्माने स्थापित कर.