Atmadharma magazine - Ank 325
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: १२ : आत्मधर्म दीवाळी अंक २४९७
प्रश्न:– जेने तीर्थंकरप्रकृति बंधाणी ते तो नियमथी केवळज्ञान पामशे?
उत्तर:– ते केवळज्ञान पामशे ए खरुं– पण कोना कारणे पामशे! जे भावथी
रागादि अशुद्धभावने ज अज्ञानी ओळखे छे, ने तेने ज ते धर्म माने छे,
पण आत्माना आश्रये थतो जे राग वगरनो शुद्धभाव छे (–सम्यग्दर्शन पण राग
वगरनो शुद्धभाव छे) ते धर्म छे ने ते मोक्षनुं कारण छे, तेने अज्ञानी ओळखतो
नथी. वीतरागी शुद्धभावने लीधे ज पंचपरमेष्ठीनुं पूज्यपणुं छे, रागने लीधे के
संयोगने लीधे पूज्यपणुं नथी. आवा वीतरागभावनी ओळखाण वडे ज
अरिहंतादिनी साची ओळखाण थाय छे. मोक्षमार्गप्रकाशकना मंगलाचरणमां पं.
टोडरमलजी लखे छे के–
मंगलमय मंगलकरण वीतराग–विज्ञान;
नमुं तेह, जेथी थया अरिहंतादि महान.
आ वीतरागविज्ञान कहो के शुद्धभाव कहो, तेना वडे ज जीवो पंचपरमेष्ठी थाय
अरिहंत–सिद्ध आचार्य–उपाध्याय–साधु ए पांचे परमेष्ठीने शुद्धभावना
माहात्म्य वडे पूज्यपणुं थयुं छे; तेमां अरिहंत अने सिद्धभगवानने तो पूर्ण शुद्धभाव
थई गयो छे, ने आचार्य–उपाध्याय साधुने एकदेश शुद्धभाव थयो छे. चोथा
गुणस्थानथी सम्यग्द्रष्टिने पण शुद्धभाव शरू थई गयो.