Atmadharma magazine - Ank 325
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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दीवाळी अंक २४९७ आत्मधर्म : १३ :
छे, ते शुद्धभावरूप साधनवडे सिद्धपदने साधे छे. रागना साधनवडे सिद्धपद सधातुं
नथी. जे रागने सिद्धपदनुं साधन माने तेने राग वगरना शुद्धभावनी खबर पण
नथी, अने शुद्धभाववाळा पंचपरमेष्ठीने पण ते ओळखतो नथी; ते तो संसारना
साधनने ज मोक्षनुं साधन मानी रह्यो छे. मुनि वगेरेने रत्नत्रयनी साथे व्रतादिनो
जे शुभराग छे ते रागवडे कांई तेओ मोक्षने नथी साधता, पण रत्नत्रयरूप जे
शुद्धताना अंशो छे तेना वडे ज पूर्ण शुद्धताने तेओ साधे छे. ए ज रीते चोथा
गुणस्थाने सम्यग्दर्शनादि जेटली भावशुद्धि छे तेना वडे ते पूर्णशुद्धतारूप मोक्षने
साधे छे, पण जे राग छे तेने मोक्षनुं साधन मानता नथी. शुद्धतानुं साधन तो
शुद्धतारूप ज होय, रागरूप न होय.
मुनि वगेरे गुरुओ वीतरागताने साधे छे ने वीतरागतानो ज वारंवार उपदेश
आपे छे; पोते जे साधे छे तेनो ज उपदेश आपे छे, अने तेओ ज गुरुपदे शोभे छे.
रागनी पुष्टिनो जे उपदेश आपे ते गुरुपदे शोभता नथी, ते तो कुगुरु छे.
वीतरागताना साधक गुरु तो वारंवार एवो उपदेश आपे छे के तारो स्वभाव
वीतरागी छे, वीतरागभाव ज धर्म छे, वीतरागभाव ज मोक्षनुं साधन छे,
वीतरागभावमां ज सुख छे, शुद्धआत्माना आश्रये वीतरागभाव ज कर्तव्य छे; –एम
वारंवार वीतरागतानो पोषक उपदेश आपे छे. रागथी धर्म थशे एम तेओ कहेता नथी.
बधा जैनशास्त्रोनो सार वीतरागभाव ज छे अने ते वीतरागता शुद्धआत्मस्वभावना
अनुभवथी थाय छे. आत्मानी सन्मुख थईने शुद्धभाव प्रगट करवो ते ज धर्मनी
शरूआत छे, ते ज मोक्षनो मार्ग छे ने तेमां ज संवर–निर्जरा छे. आवा शुद्धभावने
पामेला ने तेनो उपदेश देनारा एवा पंचपरमेष्ठी भगवंतोने नमस्कार करीने
भावप्राभृतनुं मंगलाचरण कर्युं छे.
आ भावप्राभृतमां आचार्यदेव वारंवार कहे छे के हे जीव! तुं ‘जिनभावना’
भाव! जिनभावना एटले शुद्धआत्मानी भावना; आत्माना स्वभावनी सन्मुख थईने
तेनी भावना करवी तेनुं नाम जिनभावना छे, आवी जिनभावना वडे सम्यग्दर्शन–
ज्ञान–चारित्र प्रगटे छे. माटे हे जीवो! पूर्वे नहि भावेली एवी अपूर्व जिनभावनाने
तमे भावो जिनभावना वगर जीव चार