: १४ : आत्मधर्म दीवाळी अंक २४९७
जिनभावना एटले सम्यग्दर्शन; सम्यग्दर्शनादि भावशुद्धि होय त्यां ज साची
मुनिदशा प्रगटे छे, माटे सम्यक्त्वादिरूप भावशुद्धिनी मुख्यता छे–ए वात बीजी
गाथामां समजावे छे.
गाथा : २
(भावलिंगनी प्रधानता)
प्रथम तो सम्यग्दर्शनरूप जे भाव छे ते मुख्य छे, तेना वगरनुं द्रव्यलिंग कांई
परमार्थरूप नथी. सम्यग्दर्शनादि भावशुद्धि होय त्यां द्रव्यलिंग–महाव्रतादि होय छे, तेमां
पण ते द्रव्यलिंग परमार्थरूप नथी, भावशुद्धिरूप भावलिंग ज परमार्थ छे: माटे हे जीव!
भावशुद्धिने ज तुं परमार्थ मोक्षकारण जाण–एम कहे छे–
भावो हि पढमलिंगं ण दव्वलिंगं न जाण परमत्थं।
भावो कारणभूदो गुणदोसाणां जिणा विंति।।२।।
छे भावलिंग ज मुख्य, पण नहीं द्रव्यलिंग परमार्थ छे;
गुणदोषनुं कारण कहे भगवंत जीवना भावने. (२)
भावलिंग ज मुख्य छे, तेने परमार्थरूप जाण; द्रव्यलिंगने परमार्थ न जाण.
मोक्षनुं कारण सम्यग्दर्शनादि भाव छे. मोक्षना साधक मुनिवरोने भावलिंग
अने द्रव्यलिंग बंने होय छे, पण तेमां मोक्षनुं कारण तो भावलिंग छे तेथी ते ज
परमार्थ छे. त्यां द्रव्यलिंग होय छे खरूं पण ते मोक्षनुं खरूं कारण नथी एटले ते
परमार्थ नथी. परमार्थरूप होवाथी भावलिंगने मुख्य कह्युं एटले के ‘प्रथम’ कह्युं. पहेलांं
भावलिंग प्रगटे ने पछी द्रव्यलिंग थाय–एम ‘प्रथम’ नो अर्थ नथी; पण भावलिंग
मुख्य छे–एवा अर्थमां तेने ‘प्रथम’ कह्युं छे. अथवा मुनि थनारने पहेलांं
सम्यग्दर्शनरूपी शुद्धभाव होय छे. ते जीव पहेलांं तो वैराग्यथी गुरु पासे जईने
द्रव्यलिंग