Atmadharma magazine - Ank 325
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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दीवाळी अंक २४९७ आत्मधर्म : १५ :
धारण करे छे, अने पछी अंतरना ध्यानवडे शुद्धोपयोग थतां भावलिंग प्रगटे छे, त्यारे
साचुं मुनिपणुं थाय छे.
द्रव्यलिंग बे प्रकारे–
(१) एक तो जेने सम्यग्दर्शनादि नथी ने बहारमां पंचमहाव्रतना पालन सहित
नग्नदिगंबर द्रव्यलिंग धारण कर्युं छे, तो ते मिथ्यात्वसहित द्रव्यलिंगी छे;
ते नवमी ग्रैवेयक सुधी जाय, पण तेने भवकट्टी न थाय, –माटे द्रव्यलिंग
परमार्थ नथी, ते मोक्षनुं कारण नथी. द्रव्यलिंगथी तेने धर्मनो कांई लाभ
नथी.
(२) बीजुं–जे जीव सम्यग्द्रष्टि छे, आत्मानुं भान छे, अने वैराग्यपूर्वक
मुनिदशानी भावनाथी द्रव्यलिंगने धारण करे छे; द्रव्यलिंग धारण कर्या पछी
अंदर मुनिदशाने योग्य शुद्धता न थई, सातमुं गुणस्थान न प्रगट्युं, –तो ते
सम्यग्द्रष्टि जीव पण द्रव्यलिंगी छे. तेने सम्यग्दर्शनना प्रतापे भवकट्टी तो
थई गई छे, पण मुनिदशा हजी थई नथी. द्रव्यलिंग होवा छतां तेने
भावलिंग न थयुं, माटे द्रव्यलिंग परमार्थरूप नथी, ते मोक्षनुं कारण नथी.
द्रव्यलिंगने कारणे तेने भवकट्टी नथी थई पण सम्यग्दर्शनरूप भावशुद्धिने
कारणे ज भवकट्टी थई छे.
(द्रव्यलिंग धारण करे एटले भावलिंग प्रगटे ज–एवो कांई नियम नथी; पण
ज्यां भावलिंग प्रगटे त्यां द्रव्यलिंग होय ज–एवो नियम छे.)
(३) त्रीजा प्रकारमां, भावलिंग सहित द्रव्यलिंगवाळा मुनि छे. मुनि थनार ते जीवने
आत्मानुं ज्ञान तो पहेलांं हतुं ने पछी परिणामनी उग्रता देखीने मुनिदशानी
भावनाथी पहेलांं द्रव्यलिंग धारण कर्युं; पछी अंदरमां शुद्धोपयोगना प्रयोगथी
निर्विकल्प ध्यानमां सातमुं गुणस्थान प्रगटयुं, एटले भावलिंग थयुं, साची
मुनिदशा थई. हवे तेने पण जे द्रव्यलिंग छे ते कांई मोक्षनुं कारण नथी एटले ते
परमार्थ नथी, जे भावशुद्धिरूप भावलिंग छे ते ज परमार्थ छे, ते ज मोक्षनुं
कारण छे.