
गुणस्थान प्रगटी जाय ने पछी वस्त्रादि छोडीने मुनि थाय–एम नथी. वस्त्रादि
सहित दशामां ज्ञानीने आत्मानो अनुभव होय. सम्यग्दर्शन होय, पण मुनिदशा न
होय. पहेलांं द्रव्यलिंग धारण करीने अंतरना प्रयोगपूर्वक भावलिंग प्रगट करे छे.
भावशुद्धि सहितना द्रव्यलिंगमां पण ते द्रव्यलिंग कांई परमार्थ नथी, ते जीवनुं
स्वरूप नथी. शुद्धभाव ज परमार्थ छे, ते जीवनुं स्वरूप छे. मुनिने सम्यग्दर्शन–
ज्ञान–चारित्ररूप भावलिंग साथे द्रव्यलिंग होय छे खरूं; भावलिंग साथे द्रव्यलिंग
गमे तेवुं विपरीत होय–एम न बने. द्रव्यलिंग योग्य ज होय छे, पण महत्ता
भावलिंगनी छे–एम बताववुं छे. मोक्षनुं कारण भावलिंग छे; द्रव्यलिंग नहीं.
द्रव्यलिंग तो परद्रव्य–आश्रित छे, तेनुं तो ममत्व छोडीने अरिहंतो मुक्ति पाम्या
छे. समयसार गा. ४०९–४०१ मां कहे छे के –अज्ञानी लोको द्रव्यलिंगने मोक्षमार्ग
मानीने तेनुं ममत्व करे छे, पण बधाय अरिहंत भगवंतोए तो शरीराश्रित एवा
द्रव्यलिंगनुं ममत्व छोड्युं, ने शुद्धज्ञानमय थईने, आत्माश्रित दर्शन–ज्ञान–चारित्र
वडे मोक्षनी उपासना करी. जो देहमय द्रव्यलिंग मोक्षनुं कारण होत तो अर्हंतदेवो
तेनुं ममत्व छोडीने दर्शन–ज्ञान–चारित्रने शा माटे सेवत? माटे जिनभगवंतो एम
कहे छे के द्रव्यलिंग ते खरेखर मोक्षमार्ग नथी, तेमज तेना आश्रये मोक्षमार्ग
प्रगटतो नथी, ते तो शरीराश्रित होवाथी परद्रव्य छे. दर्शन–ज्ञान–चारित्र ज
मोक्षमार्ग छे, ते आत्माश्रित होवाथी स्वद्रव्य छे. माटे हे जीव! तुं सम्यग्दर्शन–
ज्ञान–चारित्ररूप परमार्थमोक्षमार्गमां तारा आत्माने जोड. मोक्षार्थी जीवोए आवो
एक ज मोक्षमार्ग सदा सेववायोग्य छे.
छे, दरेक वस्तुमां पोतानो भाव होय छे. पण अहीं मोक्षमार्गमां ‘भाव’ एटले
जीवना सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप स्वभावभावनी मुख्यता छे, ते ज मोक्षनुं
परमार्थ कारण छे. आवी भावशुद्धि वगरनुं बधुंय