Atmadharma magazine - Ank 325
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: १८ : आत्मधर्म दीवाळी अंक २४९७
भगवान पारसनाथ
* लेखांक (४) गतांकथी चालु *
आपणा कथानायक भगवान पारसनाथनो जीव
दशामा पूर्व भवे मरुभूति हतो, पछी हाथीना भवमां
ते सम्यग्दर्शन पाम्यो; त्यांथी स्वर्गमां जईने पछी
अग्निवेग मुनि थया ने कमठ–अजगर तेने खाई गयो;
फरी स्वर्गमां जईने पछी वज्रनाभि–चक्रवर्ती थया ने
मुनि थईने ध्यानमां हता त्यां कमठ–शिकारी भीले
तेमने बाण मारीने वींधी नांख्या; अने समाधिमरण
करीने तेओ ग्रैवेयकमां अहमीन्द्र थया. त्यारपछी शुं
थयुं? ते अहीं वांचो.
(७) पारसनाथनो जीव ग्रैवेयकमां अहमीन्द्र अने
कमठनो जीव सातमी नरकमां नारकी
ग्रैवेयकमां ऊपजेला ते अहमीन्द्रनुं आयुष्य २७ सागरोपम जेटला असंख्य
देवलोकमां १६ स्वर्गथी पण उपर जे नवगै्रवेयक छे तेमां वच्चेना गै्रवेयकमां
रत्ननी दिव्यशैयामां अत्यंत तेजस्वी शरीर सहित ते देव उत्पन्न थया; हजी एक कलाक
पण न थई त्यां तो ते एकदम युवान थई गया. देवलोकनो आश्चर्यकारी वैभव जोतां ते
विचारमां पडी गया ने तेमने अवधिज्ञान प्रगट्युं; पोतानो पूर्व भव तेमणे जाणी
लीधो, तेथी धर्मनो घणो महिमा आव्यो के अहो! ते मुनिदशा धन्य हती! ते चारित्रवृक्ष
तो मोक्षफळ देनारुं छे, –पण मारी वीतराग–चारित्रदशा पूरी न थई ने थोडोक राग
बाकी रही गयो तेथी आ देवलोकमां अवतार थयो छे. अहीं पण मारे जैनधर्मनी
उपासना कर्तव्य छे. आम विचारी त्यां देवलोकना जिनालयमां बिराजमान शाश्वत
रत्नमय जिनप्रतिमानुं खूब ज भक्तिथी पूजन कर्युं. देवलोकमां कल्पवृक्षो पासेथी
पूजननी सामग्री लीधी. ते देवलोकनी ऋद्धि अलौकिक हती. त्यां