
करतो. अयोध्यानी प्रजा तेना राजमां घणी सुखी हती.
आनंद–महाराजा राजसभामां बेठा छे ने धर्मचर्चा वडे सौने आनंद करावे छे. एवामां
प्रधाने आवीने कह्युं के हे महाराज! अत्यारे नंदीश्वर–पूजाना दिवसो छे तेथी आठ
दिवस (फागण सुद आठमथी पूनम) सुधी जिनमंदिरमां भगवाननी पूजानो मोटो
अष्टाह्निका महोत्सव कर्यो छे; ते उत्सवमां पूजन करवा आप पण पधारो.
उत्सव करो ने भगवाननी पूजा रचावो, दान आपो, धर्मचर्चा करो, जिनगुणोनुं चिंतन
करो, ने जैनधर्मनी खूबखूब प्रभावना करो.
पूजामां भाग लेता हता; हजारो–लाखो नगरजनो पण उत्सव जोवा अने पूजा करवा
आव्या हता; अने प्रभुनी पूजा करीकरीने पापनो नाश करता हता.
वळी मुनिराजनी पधरामणी,–तेथी चारेकोर घणो ज हर्ष छवाई गयो. राजाए अने
प्रजाए घणी भक्तिथी मुनिराजनां दर्शन कर्या, अने पछी तेमने धर्मोपदेश आपवा
विनंति करी.
सिवाय बीजे क््यांय अमने सुख देखाणुं नहीं. आत्मानुं सुख आत्मामां ज छे; बहारमां
शोधवाथी ते नहीं मळे. आत्मानी ओळखाण वडे ज आत्मानुं सुख पमाय छे. राग वडे
पण ते सुख पमातुं नथी. जिनशासनमां अरिहंत भगवाने एम कह्युं छे के पूजा–व्रतादि
शुभराग वडे जीवने पुण्य बंधाय छे; अने मोहवगरनो जे वीतरागभाव छे ते धर्म छे,
तेना वडे मोक्ष पमाय छे.