Atmadharma magazine - Ank 325
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: २२ : आत्मधर्म दीवाळी अंक २४९७
राग वगरना सर्वज्ञदेव, परिग्रह वगरना शुद्धोपयोगी साधु ते निर्ग्रंथ गुरु,
अने शुद्धात्मानुं स्वरूप समजावीने वीतरागतानो उपदेश देनारां शास्त्रो, आवा देव–
गुरु–शास्त्र जगतमां पूज्य छे; तेनी श्रद्धा अने ओळखाण वडे आत्महित पमाय छे.
वळी ते मुनिराजे कह्युं के–नंदीश्वरद्वीपमां बावन शाश्वत जिनमंदिरो छे ने तेमां
कुल प६१६ वीतरागी जिनप्रतिमा बिराजे छे. ते जिनप्रतिमा आत्माना शुद्धस्वरूपनुं
प्रतिबिंब छे. जेम अरीसामां जोतां पोतानुं मुख देखाय छे तेम वीतरागी जिनबिंबना
दर्शनवडे आत्मानुं शुद्धस्वरूप अरिहंत जेवुं छे ते लक्षमां आवे छे; अने आत्मानुं शुद्ध
स्वरूप लक्षमां आवतां मोहकर्मनो नाश थई जाय छे.
–श्री मुनिराजनो उपदेश सांभळीने सौने घणी प्रसन्नता थई.
जिनदर्शननी प्रभावना अने जिनपूजननो महिमा प्रसिद्ध करवा माटे
मुनिराजे कह्युं: हे भव्यजनो, सांभळो! कोई ईश्वर आ जीवने कर्मनुं फळ
आपता नथी, पण जीव पोते जेवा शुभ के अशुभभाव करे छे तेवुं फळ तेने स्वयं मळे
छे. एक ज प्रतिमाने देखीने, जे पूजा वगेरेना शुभभाव करे छे तेने पुण्यफळ मळे छे,
तथा ते ज प्रतिमाने देखीने जे अनादरनो अशुभ भाव करे छे तेने पापफळ मळे छे;
अने वीतरागप्रतिमाने देखीने जे जीव पोताना शुद्धस्वरूपनुं चिंतन करे छे तेने तेमां ते
निमित्त थाय छे. प्रतिमामां जेमनी स्थापना छे ते अरिहंत परमात्मा शुद्ध
ज्ञानचेतनामय वीतरागी आत्मा छे; ते आत्माने ओळखतां पोताना आत्मानुं
शुद्धस्वरूप पण ओळखाय छे, केमके जेवा अरिहंत भगवान छे तेवो ज आ आत्मा छे.
आ रीते अरिहंतने ओळखतां आत्मा ओळखाय छे ने सम्यग्दर्शन थाय छे.
नंदीश्वरना मंदिरोमां रत्नोनी शाश्वत प्रतिमाओ देखीने घणाय देवो आश्चर्यथी
चैतन्यना महिमामां ऊतरी जाय छे ने सम्यग्दर्शन पामे छे. जेम आत्मानो शुद्धस्वभाव
शाश्वत अनादिनो छे तेम तेना प्रतिबिंबरूप वीतराग प्रतिमा पण शाश्वत अनादिनी
छे. पांचसो धनुष (एटले एक हजार मीटर जेटली) मोटी ते रत्ननी मूर्ति एवी
आश्चर्यकारी छे के जाणे साक्षात् तीर्थंकर भगवान ज बेठा होय! –जाणे