
गुरु–शास्त्र जगतमां पूज्य छे; तेनी श्रद्धा अने ओळखाण वडे आत्महित पमाय छे.
प्रतिबिंब छे. जेम अरीसामां जोतां पोतानुं मुख देखाय छे तेम वीतरागी जिनबिंबना
दर्शनवडे आत्मानुं शुद्धस्वरूप अरिहंत जेवुं छे ते लक्षमां आवे छे; अने आत्मानुं शुद्ध
स्वरूप लक्षमां आवतां मोहकर्मनो नाश थई जाय छे.
छे. एक ज प्रतिमाने देखीने, जे पूजा वगेरेना शुभभाव करे छे तेने पुण्यफळ मळे छे,
तथा ते ज प्रतिमाने देखीने जे अनादरनो अशुभ भाव करे छे तेने पापफळ मळे छे;
अने वीतरागप्रतिमाने देखीने जे जीव पोताना शुद्धस्वरूपनुं चिंतन करे छे तेने तेमां ते
निमित्त थाय छे. प्रतिमामां जेमनी स्थापना छे ते अरिहंत परमात्मा शुद्ध
ज्ञानचेतनामय वीतरागी आत्मा छे; ते आत्माने ओळखतां पोताना आत्मानुं
शुद्धस्वरूप पण ओळखाय छे, केमके जेवा अरिहंत भगवान छे तेवो ज आ आत्मा छे.
आ रीते अरिहंतने ओळखतां आत्मा ओळखाय छे ने सम्यग्दर्शन थाय छे.
शाश्वत अनादिनो छे तेम तेना प्रतिबिंबरूप वीतराग प्रतिमा पण शाश्वत अनादिनी
छे. पांचसो धनुष (एटले एक हजार मीटर जेटली) मोटी ते रत्ननी मूर्ति एवी
आश्चर्यकारी छे के जाणे साक्षात् तीर्थंकर भगवान ज बेठा होय! –जाणे