
पर झळकी रह्युं छे. तेने जोतां आत्मानो सर्वज्ञस्वभाव याद आवे छे, अहा! चैतन्यना
अनंतगुणो जाणे के मूर्त थईने झळकता होय एवी अद्भुत ए रत्नप्रतिमानी झलक छे.
ते भले अचेतन होय छतां चेतनना गुणोनां स्मरणनुं निमित्त छे.
छे तेम जिनप्रतिमारूप वीतरागदर्पणमां देखतां पोतानुं वीतरागी–रूप याद आवे छे, ने
ते वीतराग स्वरूपना चिंतन वडे सम्यग्दर्शनादि थाय छे. वीतरागप्रतिमाना दर्शन–
पूजनना शुभरागथी उत्तम पुण्य बंधाय छे. आ रीते वीतराग जिनबिंबना दर्शनने
सम्यक्त्वनुं तेमज पुण्यनुं कारण कह्युं छे; ते प्रतिमा कांई करावती नथी; पुण्य, पाप के
जिनप्रतिमा एम उपदेश आपे छे के संकल्प–विकल्पो छोडीने तमे तमारा स्वरूपमां
ठरो....हे चेतन! तुं जिनप्रतिमा था! जेवा स्वरूपे प्रभुने ध्यावशो तेवा स्वरूपे तमे
थशो. जेम चिंतामणिना चिंतन वडे ईष्ट फळ मळे छे, तेम जिनप्रतिमा समान शुद्ध
आत्माना चिंतनवडे ईष्ट फळ मळे छे.
झेर उतारवामां निमित्त थाय छे, तेम वीतरागभावरूप मंत्रवाळी जिनप्रतिमा अचेतन
होवा छतां जीवने मिथ्यात्वादिनुं झेर उतारवामां निमित्त थाय छे. जेम राजमुद्राने
मस्तके चढावीए छीए तेम प्रतिमामां जिनभगवाननी स्थापना थतां ते जिनमुद्राने
जिनवर समान ज गणीने तेनुं बहुमान करीए छीए, ने जिनगुणोने याद करीने तेनी
भावना करीए छीए. जे अज्ञानी जीवो जिनप्रतिमाने देखीने जिनदेवने याद नथी
करता ने ऊल्टा तेनी निंदा करे छे तेने तो जिनगुणनो प्रेम ज नथी. पितानो के पत्नीनो
फोटो तो प्रेमथी जुए छे ने वीतराग भगवाननी मूर्ति जोतां वीतराग प्रत्ये प्रेम के
भक्ति नथी, ते तो संसारसमुद्रनी वच्चे विषय–कषायरूपी मगरना मुखमां ज पडेला छे.
हररोज जिनवरदेवनां दर्शन करीने जिनभावना भाववी ते दरेक श्रावकनुं कर्तव्य छे.
लाग्या...... (विशेष आवता अंकमां)