Atmadharma magazine - Ank 325
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: २६ : आत्मधर्म दीवाळी अंक २४९७
सर्वज्ञनो धर्म– (अनुसंधान पृ. ८ थी चालु)
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सर्वज्ञनो धर्म सुशर्ण जाणी, आराध! आराध! प्रभाव आणी,
अनाथ एकान्त सनाथ थाशे, एना विना कोई न बाह्य स्हाशे.
(श्रीमद् राजचंद्र)
अरे जीव! शरणरूप तारो सर्वज्ञस्वभाव.......एनी आराधना कर! बीजुं कोई
तने शरण नथी.
भगवान आ तारी कार्यसिद्धिनो अवसर छे......हे जीव! आवो उत्तम अवसर
पामी तेने तुं चुकीश मा! तारा अचिंत्य शक्तिवाळा आत्माने तुं चुकीश मा.....
आत्माने चुकीने परने पोतानां मानीश मा......रागादि विकल्पोनो संग्रह करीश मा.
अहा, आ चैतन्यदेवनुं सामर्थ्य अपार छे....सर्व ज्ञेयोने जाणवानुं जेनी एक
पर्यायनुं सामर्थ्य, एवा पूर्ण सामर्थ्यथी भरेली स्ववस्तुनो ज्यां परिग्रह थयो त्यां
धर्मीजीव रागादि परभावोनो संग्रह करतो नथी, तेमां एकता करतो नथी, एटले ते
परभावो छूटी जाय छे, तेनी निर्जरा थई जाय छे. ते तो पोताना ज्ञाननी शुद्धताने ज
ग्रहण करे छे; ते ज्ञान साथे अतीन्द्रिय सुख छे, एटले ते ज्ञानमां स्वयमेव कार्यसिद्धि
छे. ते ज्ञान कृतकृत्य छे, तेना सर्व अर्थ सिद्ध थया छे तेथी ते पोते ‘सर्वार्थसिद्ध’ छे.
सर्वार्थसिद्धिना विमाननी आ वात नथी पण अंतरमां चैतन्यना अतीन्द्रिय सुखरूपी
सर्व कार्य सिद्ध थया छे–एवा आत्मस्वभावनी आ वात छे. दरेक ज्ञानी पोताना
आत्माने अचिंत्यशक्तिवाळा ‘सर्वार्थसिद्ध’ स्वरूपे जुए छे; सर्वे अर्थ जेनां सिद्ध छे
एवो अचिंत्यशक्तिवाळो देव हुं पोते ज छुं–एम धर्मी अनुभवे छे, पछी कोई पण
बीजा पदार्थने मेळववानी वांछा तेने केम होय? माटे तेने किंचित मात्र अन्य वस्तुनो
परिग्रह नथी.
पोतानुं कार्य सिद्ध थई गयुं पछी बीजा साधनने कोण गोते? आवा
सर्वार्थसिद्धि–संपन्न अचिंत्यशक्तिवाळा चैतन्यदेवने ओळखीने तेने नमवुं–तेमां
परिणमवुं ते परमार्थ देवसेवा छे, विकल्पातीत आनंद तेनुं फळ छे.
जगतना बधा पदार्थोना अस्तित्वने जाहेर करवानी जेनी ताकात छे, अने जेना
वगर जगतना कोई पदार्थनुं अस्तित्व प्रसिद्ध न थई शके एवी महान शक्तिवाळो आ
चैतन्यदेव छे.....ए देवना चिंतनथी महा आनंद थाय छे ने आत्माना सर्व कार्य सिद्ध
थाय छे. धर्मी जीव पोताना आत्माने ज आवी अचिंत्यशक्तिवाळो देव जाणीने सर्व
प्रकारे तेनी ज आराधना करे छे. तेनी आराधना वडे सम्यग्दर्शनथी मांडीने सिद्धपद
सुधीनां कार्यो सिद्ध थाय छे.