
छे; आम तत्पणुं ने अतत्पणुं एवा बंने धर्मोरूप अनेकान्तपणुं ज्ञानस्वरूप आत्मामां
स्वयमेव प्रकाशी रह्युं छे. भाई! तारो आत्मा आवा स्वरूपे छे, तेनो निर्णय तो कर.
संबंध छे. त्यां पोताना ज्ञानरसमां तन्मयपणुं भूलीने अज्ञानी पोताना ज्ञानतत्त्वने
परज्ञेयरूपे मानी ल्ये छे, ज्ञानने परनी साथे तन्मयपणुं माने छे एटले ज्ञानतत्त्वनो ते
नाश करे छे, अर्थात् ज्ञेयोथी भिन्न पोताना ज्ञानने ते भूली जाय छे. पण सर्वज्ञदेवे
कहेलुं अनेकान्तमय वस्तुस्वरूप तेने एम प्रसिद्ध करे छे के हे जीव! तुं तो ज्ञान छो,
तारुं तत्पणुं तो निज स्वरूपमां छे; तारुं तो ज्ञानरूप परिणमन छे, कांई ज्ञेयोमां तुं
चाल्यो गयो नथी. माटे तारा ज्ञानमां ज तारुं तन्मयपणुं जाण! ने ज्ञेयोथी भिन्न एवा
ज्ञानने ज स्वपणे अनुभवमां ले. आम स्वरूपथी तत्पणुं बतावीने अनेकांत ते जीवनो
उद्धार करे छे, तेनुं अज्ञान मटाडीने तेने ज्ञानी करे छे.
मने ज्ञान थाय छे–एम ते ज्ञानथी भिन्न एवा परज्ञेयोने पण पोतापणे मानीने,
पोताना स्वाधीन अस्तित्वनो नाश करे छे, ज्ञाननुं परज्ञेयोथी अतत्पणुं छे–एटले
भिन्नपणुं छे तेने ते जाणतो नथी. त्यारे अनेकान्त तेने परथी अतत्पणुं बतावीने
भिन्नज्ञानने प्रसिद्ध करे छे के हे भाई! तुं तो विश्वथी भिन्न ज्ञान छो. जाणनारो तुं
छो, पण जे परज्ञेयो जणाय छे ते तुं नथी; ज्ञान अने ज्ञेयोनी अत्यंत भिन्नता छे.
परिणमता नथी. तारा ज्ञानपरिणमनने छोडीने, जेमां तारा ज्ञाननुं अतत्पणुं छे एवा
अज्ञानतत्त्वने तुं पोताना आत्मारूपे माने छे, पण तेमां तो तारो नाश थाय छे. माटे तुं
तारा ज्ञानने विश्वथी भिन्न देख, ने पोताना ज्ञानमां ज तुं तन्मय रहे. आ रीते
अनेकान्त ज आत्माने ज्ञानमात्रभावपणे जीवंत राखे छे.