: ३४ : आत्मधर्म दीवाळी अंक २४९७
अनुभव थशे. परज्ञेयोथी तारुं असत्पणुं छे. शास्त्रो–वाणी–ईन्द्रियो के विकल्पो –
तेनाथी जे ज्ञाननी उत्पत्ति माने छे ते परज्ञेयोने ज्ञानपणे ज माने छे; पण अनेकान्त
तेने परद्रव्यथी असत्पणुं बतावीने एम समजावे छे के हे भाई! पर ज्ञेयोमांथी तारुं
ज्ञान आवतुं नथी. ज्ञाननुं अस्तित्व ज्ञानमां छे; परनुं अस्तित्व परमां छे, परमां
ज्ञाननुं नास्तित्व छे. –आम अनेकान्तवडे तुं परद्रव्यथी तारी भिन्नता जाण.
भगवाननी वाणीमां एम आव्युं के ‘हे जीव! तुं ज्ञान छो. ’ ए ज वखते अहीं
जीवने पण एवुं ज ज्ञान थयुं. –त्यां अज्ञानी भ्रम करे छे के वाणीने लीधे मने ज्ञान
थयुं! एटले ज्ञाननुं सत्पणुं पोतामां छे ने वाणीमां ज्ञाननुं सत्पणुं नथी एवा
अनेकान्तने ते अज्ञानी ओळखतो नथी. जो अनेकान्तस्वरूपने समजे एटले के ज्ञाननुं
स्वथी सत्पणुं ने परथी असत्पणुं समजे तो परने लीधे ज्ञान थवानुं माने नहीं;
एटले स्वद्रव्याश्रित ज्ञानपरिणमन थतां परम आनंदरूप अमृत तेने प्रगटे.
जुओ, आ अनेकान्तमां तो जैनधर्मनुं मूळरहस्य छे; विश्वना वस्तुस्वरूपने आ
अनेकान्त प्रकाशे छे. अनेकान्त तो सर्वज्ञ भगवाननुं अमोघ लांछन छे. भाई, तारा
ज्ञाननुं सत्पणुं ताराथी ज छे, कोई बीजाने लीधे (देव–गुरु–शास्त्रने लीधे के ईन्द्रियोने
लीधे के विकल्पोने लीधे) तारा ज्ञाननुं सत्पणुं नथी. तारुं ज्ञान बीजो कोई आपे नहि
ने तारा ज्ञानने बीजुं कोई हणी शके नहीं. स्वाधीन ज्ञानपणे परिणमतो आत्मा
आनंदना अमृतने पोताना अस्तित्वमां अनुभवे छे. –आवुं आनंदजीवन अनेकान्त
जीवाडे छे. (–विशेष आवता अंके)
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विविध समाचार:– प्रभावना अने प्रचार संबंधी केटलाक समाचार गतांकमां
आपेल हता. तदुपरांत तलोद–शिक्षणशिबिर, जयपुर, ललितपुर, खंडवा, छिन्दवाडा,
प्रतापगढ, भोपाल, रतलाम, जसवंतनगर, माधोगंज–लश्कर–ग्वालियर, मंदसौर,
शमसाबाद, अशोकनगर, गुना, पुना, निरा बारामती पिपरईगांव, लोहारदा,
राघवगढ, सागर धरणगांव, बडनगर, बीना–बजरिया वगेरे स्थळे पण सोनगढना
प्रचारविभाग तरफथी विद्वान भाईओ गयेला, अने त्यां हजारोनी संख्यामां
मुमुक्षुओए लाभ लीधेल, तेना उत्साहभर्या समाचार प्राप्त थयेल छे, अनेक स्थळे
जैन–पाठशाळा पण चालु थयेल छे. –धन्यवाद!
भगवान पारसनाथ:– सचित्र दशभवना वर्णननुं पुस्तक तैयार थई गयुं छे:
किंमत एक रूपीयो (गतांकमां भूलथी ००–८० पैसा लखेल छे.)