दीवाळी अंक २४९७ आत्मधर्म : ३५ :
परम भाग्ये प्राप्त थयेलो जैनधर्म
श्री कुंदकुंदस्वामी कहे छे के हे भव्य जीव!
बोधिने माटे अत्यंत उल्लासपूर्वक आ
जिनधर्मनुं सेवन कर. आत्मानी
ओळखाण वडे सम्यग्दर्शनादि प्रगट
करीने तुं अरिहंतभगवानना परिवारमां
आवी जा!
अहो, त्रणभुवनमां सार एवा सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप बोधि, तेनी प्राप्ति
अहो, आ जगतमां भगवान आत्मानी बोधि आनंदरूप छे, तेनाथी ऊंचुं आ
जैनधर्म एटले शुं? ते वात ८३मी गाथामां कहेशे के आत्माना जे मोह–राग–द्वेष
जैनशासन एटले सर्वज्ञ जिनदेवनो उपदेश एम कहे छे के हे जीवो! तमे ज्ञान–
आनंदस्वभावथी भरेला छो; ज्ञानस्वभावथी अधिक बीजुं कांई