Atmadharma magazine - Ank 325
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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दीवाळी अंक २४९७ आत्मधर्म : ५ :
आत्माना अवलंबने प्रगटेला जे ज्ञान–दर्शन–चारित्र वगेरे शुद्धभाव, तेमां
आत्मा ज छे; एटले ते शुद्धभावथी अभेदपणे पोताने धर्मीजीव अनुभवे छे.–
आदा खु मज्झ णाणे आदा मे दंसणे चरित्तेय।
आदा पच्चक्खाणे आदा मे संवरे जोगे।।५८।।
(आवी ज गाथा नियमसारमां १०० मी, तथा समयसारमां २७७ मी छे.)
मुज ज्ञानमां आत्मा खरे, दर्शन–चरितमां आतमा,
पचखाणमां आत्मा ज, संवर–योगमां पण आतमा.
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रनो, के प्रत्याख्यान–संवर वगेरे शुद्धभावनो आश्रय
मारो आत्मा ज छे; तेमां आत्मा सिवाय बीजुं कोई कारण नथी; देहना आधारे के
शास्त्रनी वाणीना आधारे, के विकल्पोना आधारे सम्यग्दर्शनादि शुद्धभावो थता नथी.
चेतनामय जे शुद्ध सहज भावो छे तेनो हेतु पोतानो आत्मा ज छे. अने ते निर्मळ
भावोमां चेतनमय आत्मा ज प्रसरेलो छे, तेमां राग नथी, तेमां परचीज नथी, एटले
बीजुं कोई तेनुं कारण नथी.
–आवा आत्मानो अनुभव जेने होय तेने ज भावलिंग प्रगटे ने तेने ज
साधुपणुं होय. सम्यक्त्वादि जे शुद्धभावो छे ते बधाय अभेदपणे आत्मा ज छे; आत्मा
सिवाय बीजा कोई रागादि भावो साथे तेने एकता नथी. सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रमां
राग नथी, राग तो तेनाथी दूर छे, ने आत्मा तेमां नजीक छे; आत्मा नजीक छे एटले
आत्मामां एकाग्रताथी ते भावो प्रगट्या छे, ने आ ज मोक्षनुं कारण छे.
मोक्षनुं कारण सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र छे; ने सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रनुं
कारण पोतानो शुद्ध आत्मा ज छे; शुद्धआत्माना ज अवलंबने शुद्धभावरूप परिणमन
थाय छे. आ रीते पोतानी निर्मळपर्यायनुं कारण अभेदपणे पोतानुं द्रव्य ज छे. बीजा
साथे तेने जराय संबंध नथी. माटे धर्मी कहे छे के परनुं अवलंबन तो हुं सर्वथा छोडुं छुं
ने मारा आत्मानुं अवलंबन करुं छुं.
परद्रव्यना अवलंबने तो रागादिभाव ज थाय छे. पोताना आत्मा सिवायनुं जे
कोई परद्रव्य होय तेना अवलंबने रागादि अशुद्धभाव ज थाय छे, तेथी ते शुद्धतानुं
कारण नथी. परद्रव्यना आश्रये तो संसार छे, ने स्वद्रव्यना ज आश्रये मुक्ति छे.